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परीक्षागुरु.
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एक गुलामको साथ लेकर नाब में बैठा. वह गुलाम कभी नाव मैं नहीं बैठा था इस लिये भय से रोनें लगा धैर्य और उपदेशकी बातों सै उस्के चित्त का कुछ समाधान न हुआ. निदान बादशाह सै हुक्म लेकर एक बुद्धिमान नें (जो उसी नावमैं बैठा था) उसै पानी मैं डाल दिया और दो, चार गोते खाए पीछे नाव पर ले लिया जिस्मैं उस्के चित्तकी शान्ति हो गई. बादशाह नें पूछा इस्मैं क्या युक्ति थी? बुद्धिमान नें जवाब दिया कि पहले यह डूबनेका दुःख और नावके सहारे बचनें का सुख नहीं जान्ता था. सुखकी महिमा वही जान्ता है जिस्को दुःख का अनुभव हो”

“परन्तु इस्समय इस अनुभव सै क्या लाभ होगा घोड़ा बिना चाबुक बृथा है" लाला मदनमोहननें निराश होकर कहा.

"नहीं, नहीं ईश्वरकी कृपा सै कभी निराश न हो वह कोई बात युक्ति शून्य नहीं करता" लाला ब्रजकिशोर कहनें लगे. “मि० पारनेलनें लिखा है कि “एक तपस्वी जन्म से बन मैं रह कर ईश्वराराधन करता था एक बार धर्मात्माओंको दुखी और पापियोंको सुखी देख कर उस्के चित्त मैं ईश्वर के इन्साफ़ बिषै शंका उत्पन्न हुई और वह इस बातका निर्धार करनें के लिये बस्ती की तरफ चला रस्ते मैं उस्को एक जवान आदमी मिला और यह दोनों साथ, साथ चलने लगे। सन्ध्या समय इन्को एक ऊचा महल दिखाई दिया और वहां पहुंचे जबउस्के मालिकनें इन दोनोंका हद्द सै ज्यादः सत्कार किया. प्रातःकाल जब ये चलनें लगे तो उस जवाननें एक सोनेंका प्याला चुरा लिया. थोड़ी दूर आगे बढे इतनें मैं घनघोर घटा चढ आई और मेह