पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/३०५

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सुधरने की रीति.
 


बरसनें लगा इस्सै यह दोनों एक पासकी झोपड़ी मैं सहारा लेनें गए. उस झोपड़ीका मालिक अत्यन्त डरपोक और निर्दय था इसलिये उस्नें बड़ी कठिनाईसै इन्हैं थोड़ी देर ठैरनें दिया, अनादर सै सूखी रोटी के थोडसे टुकड़े खानें को दिये और बरसात कम होते ही चलनें का संकेत किया चल्ती वार उस जवाननें अपनी बगल सै सोनेका प्याला निकाल कर उसै दे दिया। जिस्पर तपस्वी को जवान की यह दोनों बातें बड़ी अनुचित मालूम हुई खैर! आगे बढ़े सन्ध्या समय एक सद्गृहस्थ के यहां पहुंचे जो मध्यम भाव सै रहता था और बडाई का भी भूका न था. उस्नें इन्का भलीभांति सत्कार किया और जब ये प्रातःकाल चलनें लगे तो इन्को मार्ग दिखानें के लिये एक अगुआ इन्के साथ कर दिया पर यह जवान सबकी दृष्टि बचा कर चल्ती वार उस सद् गृहस्थ के छोटेसे बालक का गला घोंट कर उसै मारता गया! और एक पुल पर पहुच कर उस अणुए को भी धक्का दे नदीमें डाल दिया! इन्वातों सै अब तो इस तपस्वी के धि:कार और क्रोध की कुछ हद्द न रही. वह उस्को दुर्बचन कहा चाहता था इतनें मैं उस जवानका आकार एकाएक बदल गया उस्के मुखपर सूर्य का सा प्रकाश चमकनें लगा और सब लक्षण देवताओंकेसे दिखाई दिये. वह बोला “में परमेश्वरका दूत हूंं और परमेश्वर तुम्हारी भक्ति से प्रसन्न हैं. इसलिये परमेश्वरकी आज्ञा सै मैं तुम्हारा संशय दूर करनें आया हूं. जिस काम मैं मनुष्यकी बुद्धि नहीं पहुंचती उस्को वह युक्ति शून्य समझनें लगता है परन्तु यह उस्की केवल मूर्खता है. देखो मेरे यह सब काम तुमको उल्टे मालूम पड़ते