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परिक्षागुरु.
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"बस आप इस विषय में और कुछ न कहैं. मुझको इस्समय जो मिला है उससे अधिक आप क्या दे सकते हैं? मैं रुपये पैसै के बदले मनुष्य के चित्त पर विशेष दृष्टि रखता हूं और आपके देने ही का आग्रह हो तो मैं यह मांगता हूं कि आप अपने आचरण ठीक रखने के लिये इस्समय जैसे मजबूत हैं वैसे ही सदा बनें रहें और यह गहना मेरी तरफ सै मेरी पतिब्रता बहन और उस्के गुलाब जैसे छोटे,छोटे बालकों को पहनावें जिन्हें देखनें से मेरा जी हरा हो" लाला ब्रजकिशोर ने कहा.

"परमेश्वर चाहेंगे तो आगे को आप की कृपा से कोई बात अनुचित न होगी" लाला मदनमोहन नें जवाब दिया.

"ईश्वर आप को सदा भले कामों की सामर्थ्य दे और सब का मंगल करे" लाला ब्रजकिशोर सच्चे सुख मैं निमग्न होकर बोले.

निदान सब लोग बडे आनन्द से हिल मिलकर मदनमोहन को घर लिवा ले गए और चारों तरफ से "बधाई" "बधाई" होने लगी.

जो सच्चा सुख,सुख मिलने की मृगतृषणा से मदनमोहन को अबतक स्वप्न में भी नहीं मिला था वही सच्चा सुख इस्समय ब्रजकिशोर की बुद्धिमानी से परीक्षागुरु के कारण प्रामाणिक भाव सै रहने में मदनमोहन को घर बैठे मिल गया!!!

।।समाप्त।।