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परीक्षा गुरु
३०
 


कि शायद मेरा माल पसन्द न आय" हरकिशोर ने मुस्करा कर कहा.


"तुम कपड़ा दिखाने आए हो या बातों की दुकानदारी लगाने आए हो? जो कपड़ा दिखाना हो तो झट पट दिखा दो नहीं तो अपना रास्ता लो हमको थोथी बातों के लिए इस समय अवकाश नहीं है” लाला मदनमोहन ने भौं चढ़ा कर कहा.


"यह तो मैंने पहले ही कहा था अच्छा! अब मैं जाता हूं फिर किसी वक्त हाज़िर होऊँगा”


"तो तुम कल नौ-दस बजे मकान पर आना" यह कह कर लाला मदनमोहन ने उसे रुखसत किया.


"आपस में क्या मन की बातें हो रहीं थीं न जाने यह हत्या बीच में कहां से आ गई" लाला हरदयाल बोले.


"खैर अब कुछ दिल्लगी की बात छेडिये!” लाला मदनमोहन ने फ़रमायश की.

निदान बहुत देर तक अच्छी तरह मिल भेंट कर लाला हर दयाल अपने मकान को गए और लाला मदनमोहन अपने मकान को गए.