पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/३९

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विषयासक्त
 
प्रकरण-५.

विषयासक्त[१]

इच्छा फलके लाभसों कबहुँ न पूरहि आश
जैसे पावक घृत मिले बहु विधि करत प्रकाश

हरिवंश.

लाला मदनमोहन बाग़ सै आए पीछे ब्यालू करके अपनें कमरे मैं आए उस्समय लाला ब्रजकिशोर, मुन्शी चुन्नीलाल, मास्टर शिंभूदयाल, बाबू बैजनाथ, पंडित पुरुषोत्तमदास, हकीम अहमदहुसैन वगैरह सब दरबारी लोग मौजूद थे. लाला साहब के आते ही ग्वालियर के गवैयौं का गाना होने लगा.

"मैं जान्ता हूं कि आप इस निर्दोष दिल्लगी को तो अवश्य पसंद करते होंगे देखिये इस्सै दिन भर की थकान उतर जाती है और चित्त प्रसन्न हो जाता है" लाला मदनमोहन नें थोड़ी देर पीछै लाला ब्रजकिशोर सै कहा.

"सब बातें काम के पीछे अच्छी लगती हैं जो सब तरह का प्रबंध बंध रहा हो, काम के उसूलों पर दृष्टि हो, भले बुरे काम और भले बुरे आदमियों की पहचान हो, तो अपना काम किये पीछै घड़ी, दो घड़ी की दिल्लगी मैं कुछ बिगाड़ नहीं है पर उस्समय भी इस्का व्यसन न होना चाहिये" लाला ब्रजकिशोर ने जवाब दिया.


  1. नजातु काम: कामाना मुपभोगेन शाम्यति॥ हविषा कृष्णवर्त्मैव भूय एवाभिवर्द्धते