पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/४९

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भले बुरे की पहचान
 


दास ने कहा है "निरीनीति कायरपनो केवल बल पशुधर्म्म॥ तासों उभय मिलाय इन सिद्ध किये सब कर्म्म॥[१]

हीन निकम्मे होत हैं बली उपद्रववान॥ तासों कीन्हें मित्र तिन मध्यम बल अनुमान॥[२]"

"चाणक्य ने लिखा है "बहुत दान ते बलि बँध्यो मान मरो कुरुराज॥ लंपट पन रावण हत्यो अति वर्जित सब काज॥[३]"

"फीजिया के मशहूर हकीम एपिक्टेट्स की सब नीति इन दो वचनों में समाई हुई है कि "धैर्य सै सहना" और "मध्यम भाव सै रहना" चाहिये.

"कुरान मैं कहा है कि "अय(लोगों)! खाओ, पीओ परन्तु फ़िजूलख़र्ची न करो॥[४]"

"बृन्द कहता है "कारज सोई सुधर है जो करिये समभाय॥ अति बरसे बरसे बिना जों खेती कुह्मलाए।"

"अच्छा संसार मैं किसी मनुष्य का इसरीति पर पूरा बरताव भी आज तक हुआ है?" बाबू बैजनाथ ने पूछा.

"क्यों नहीं देखिये पाईसिस्ट्रेट्रस नामी एथीनियन का नाम इसी कारण इतिहास मैं चमक रहा है. वह उदार होनें पर


  1. कातर्य केवलानीति: शौर्यश्वापदचेष्टितम्॥
    अंत: सिद्धिसमेताम्या सुभाभ्यामन्वियेष स:॥
  2. हीमान्धनुपकर्तृणि प्रवृद्धानि विकुर्वते॥
    तेन मध्यमशक्तिनी मित्राणि स्थापितान्यतः
  3. अतिदानाद् बलिर्बद्धो नष्टो मानात् सुयोधन:॥
    विनष्टो रावणो लौल्या दतिसर्वत्र वर्जयेत्
  4. कुलू वश्रवू व ला तुस्रिफू