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परीक्षा गुरु
५६
 


में क्या संदेह है?” मास्टर शिंभूदयाल ने शय दी और सब लोग पंडितजी के मुंह की तरफ़ देखने लगे.

“शास्त्र से कोई बात बाहर नहीं है जब हम सूर्य चन्द्रमा का ग्रहण पहले से बता देते हैं तो पृथ्वी पर की कोई बात बतानी हमको क्या कठिन है?” पंडित पुरुषोत्तमदास ने बात उड़ाने के वास्ते कहा.

“तो आप रेल और तार का हाल भी अच्छी तरह जानते होंगे?” बाबू बैजनाथ ने पूछा. “में जानता हूं कि इन सब का प्रचार पहले हो चुका है क्योंकि "रेल पेल" और “एकतार" होने की कहावत अपने यहां बहुत दिन से चली आती है" पंडितजी ने जवाब दिया.

“अच्छा महाराज! रेल शब्द का अर्थ क्या है? और यह कैसे चलती है?" मास्टर शिंभूदयाल ने पूछा.

"भला यह बात भी कुछ पूछने के लायक है! जिस तरह पानी की रेल सब चीज़ों को बहा ले जाती है उसी तरह यह रेल भी सब चीज़ों को घसीट ले जाती है इस वास्ते इसको लोग रेल कहते हैं और रेल धुएँ के ज़ोर से चलती है यह बात तो छोटे-छोटे बच्चे भी जानते हैं”* पंडित पुरुषोत्तमदास ने जवाब दिया और इसपर सब आपस में एक दूसरे की तरफ़ देखकर मुस्कराने लगे.

"और तार?" मुन्शी चुन्नीलाल ने रही सही कलई खोलने के वास्ते पूछा.


  • देेश भाषा में बाफ और बिजली की शक्ति के वृत्तांत न प्रकाशित होने का यह फल है कि अब तक सर्व साधारण रेल और तार का भेद कुछ नहीं जानते.
  • गैस से भरा हुआ उड़ने का गुब्बारा.