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परीक्षा गुरु
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जिस बात के सहसा प्रगट करने में कुछ खटका समझता उसका प्रथम इशारा कर देता था और सुनने वाले के आग्रह पर रुक कर वह बात कहता था, जोखों की बात लोगों पर ढाल कर कहता था अथवा शिंभूदयाल वगैरह के मुख से कहवा दिया करता था और आप साधने को तैयार रहता था. तुच्छ बातों को बढ़ाकर बड़ी बातों को घटाकर अपनी तरफ़ से नमक मिर्च लगाकर, कभी प्रसन्न, कभी उदास, कभी क्रोधित कभी शान्त होकर यह इस रीति से बात कहता था कि जो कहता था उसकी मूर्ति बन जाता था. इसके मन में संग्रह करने की वृत्ति सब से प्रबल थी.

मुन्शी चुन्नीलाल ब्रजकिशोर के यहां नौकर था जब अपनी चालाकी से बहुधा मुकद्दमेवालों को उलट-पुलट समझा कर अपना हक ठहरा लिया करता था. स्टाम्प, तल्बाने वगैरह के हिसाब में उन लोगों को धोका दे दिया करता था बल्कि कभी कभी प्रतिपक्षी से मिलकर किसी मुकदमे वाले का सबूत वगैरहभ भी गुप चुप उसको दिखा दिया करता था. ब्रज- किशोर ने ये भेद जाते ही पहले उसे समझाया फिर धमकाया जब इसपर भी राह में न आया तो घर का मार्ग दिखाया. इसने पहले ही से ब्रजकिशोर का मन देख कर लाला मदनमोहन के पास अपनी मिसल लगा ली थी हरकिशोर को अपना सहायक बना लिया था. लाला ब्रजकिशोर के पास से अलग होते ही लाला मदनमोहन के पास रहने लगा.

मुन्शी चुन्नीलाल ने लाला मदनमोहन के स्वभाव को अच्छी तरह पहचान लिया था. लाला मदनमोहन को हाकमों की