पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/७३

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सभासद.
 


इनकी प्रसन्नता थी. और अपनी सर्वज्ञता बताने के लिये जाने बिना जाने हर काम में पांव अड़ाते थे. मदनमोहन को प्रसन्न करने के लिये अपनी चिड़ करेले की कर रक्खी थी. चुन्नीलाल और शिंभूदयाल आदि की कटती कहने में कसर न रखते थे परंतु अकल मोटी थी इस लिये उन्हों ने इन्हें खिलोना बना रखा था, और परकैच कबूतर की तरह वह इन्हें अपना बसबर्ती रखते थे.


हकीम अहमदहुसैन बड़ा कम हिम्मत मनुष्य था इसको चुन्नी लाल और शिंभूदयाल में कुछ प्रीति न थी परंतु उनको कर्ता समझ कर अपने नुक्सान के डर से यह सदा उनकी खुशामद किया करता था. उन्हीं को अपना सहायक बना रखा. उनके पीछे बहुधा मदनमोहन के पास नहीं जाता आता था और मदनमोहन की बड़ाई तथा चुन्नीलाल और शिंभूदयाल की बातों को पुष्ट करने के सिवाय और कोई बात मदनमोहन के आगे मुख से नहीं निकालता था. मदनमोहन के लिये औषधि तक मदनमोहन के इच्छानुसार बताई जाती थी. मदनमोहन का कहना उचित हो अथवा अनुचित हो, यह उसकी हांँ में हांँ मिलाने को तैयार था. मदनमोहन की राय के साथ इसको अपनी राय बदलने में भी कुछ उज्र न था! "यह लालाजी का नौकर था कुछ बैंगनों का नौकर नहीं था” परंतु इन लोगों की प्रसन्नता में कुछ अंतर न आता हो तो यह ब्रजकिशोर की कहन में भी सम्मति करने को तैयार रहता था. इसको बड़े-बड़े कामों को करने की हिम्मत तो कहां से आती? छोटे- छोटे कामों से इसका जी दहल जाता था अजीर्ण के डर