होना चाहिए। यही मत जनरल कनिहाम का भी है।
जनरल साहब ने पुरातत्व विषयक जो पुस्तक-माला लिसी
है उसके भी पहले भाग में उन्होंने इस विषय का बड़ा
मनोरञ्जक वर्णन किया है। सम्भव है, मूल-लेखक ने
अपने लेख का अधिकांश उसी की सहायता से लिखा हो।
प्रिंसेप के बाद कोई ३० वर्ष तक जेम्स फर्गुसन,
मेजर किष्टी, एडवर्ड टामस, जनरल कनिहाम, वाल्टर
इलियट, मंडोज़ टेलर, टी वन्स, भाऊदाजी आदि कितने
ती ही विद्वानों ने भारतीय पुरातत्त्व के काम को आगे बढ़ाया
और नये नये ऐतिहासिक तत्वों का उद्घाटन किया।
किनी ने उत्तरी भारत में काम किया। किसी ने पश्चिमी
में, किसी ने दक्षिणी में । फर्गुसन ने पुरातन-वास्तुविधा
(Ancient Architocture) का ज्ञान प्राप्त कर,
पुग्नफें लिखी। टामस ने पुराने सिक्कों की ज्ञन-प्राप्ति के
लिए परिश्रम किया। मेजर किट्टो ने पुरानी चित्र-विधा
उद्धार की चेष्टा की। टेलर ने मूर्ति-निर्माण-विधा पर
पुन्नर-प्रकाशन किया। जनरल कनिहाम ने ब्राह्मी, खरोष्ठी,
गुप्तकालीन-समी लिपियों का यथेष्ट ज्ञान प्राप्त कर
सैकड़ों-हज़ारों शिलालेखों और दानपत्रों को, विवरणपूर्वक,
प्रकाशित किया। इन लोगों की देखादेखी भारतीय विद्वान्
ज्ञान-सम्पादन पी एम आशा की और झुके और पहले
पहल बम्बाई के डाक्टर भाजदाजी ने पिराने ही नवीन