वशिष्ठ और वरुण समुद्र-यात्रा करने गये थे। उन्हें उसके
हिलने से बडा आनन्द आया था। पांचवीं जगह (१-
११६-३) लिखा है कि राजर्षि तुग्र ने, सुदृर-द्वीप-निवासी
अपने कुछ शत्रुओ पर आक्रमण करने के लिए, अपने पुत्र
भुज्यु को जल-सेना के साथ, भेजा था। रास्ते में तूफ़ान
आ जाने से जहाज़ टूट गया। इस कारण भुज्यु, अपने
साथियों समेत, समुद्र में डूबने लगा। वहाँ, उस समय,
उसे उस-विपत्ति से बचानेवाला कोई न था। परन्तु दैव-
योग से अश्विन नाम के दो जोड़िया भाइयो ने आकर
उसकी रक्षा की और वह डूबने से बच गया।
रामायण में ऐसे कितने ही श्लोक हैं जिनसे प्रकट होता है कि भारतवासी समुद्र की राह अन्यान्य देशो को जाते थे। जब चानरेन्द्र सुग्रीव बड़े बड़े वानरों को, सीताजी का पता लगाने के लिए, भेजने लगे तब उन्होंने उनको उन स्थानो के भी नाम बताये जहाँ सीता के मिलने की सम्भावना थी। जिन श्लोकों या श्लोक-खण्डों में उन नामों का उल्लेख है उन्हें हम यहाँ पर उद्धृत करते हैं-
समुद्रमवगाढॉश्च पर्वतान् पत्तनानि च।
भूमिञ्च कोपकाराणां भूमिञ्च रजताकराम्।
यत्नवन्तो यवद्वीपं सप्तराज्योपशोभितम्।
सुवर्णरूप्यकद्वीपं सुवर्णकरमण्डितम्।
ततो रक्तजलं भीमं लोहितं नाम सागरम्।