पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/१०१

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१०० पुरानी हिंदी F कहते हैं कि पीर स्वय नही उडते, मुरीद उनके पर लगा देते हैं । पाणिनि ने स्वय दावा नही किया है कि जिन चौदह सूत्रो मे वर्णमालक का नम इदलकर मैंने इतना सक्षेप और मसौकयं पाया है उनका मुझे. इलहाम हुआ है, किंतु बात चल गई कि महेश्वर के उमस के चौदह बार वजने से पाणिनि ने उन्हें पाया । करामातो पर लोगो का विश्वास हो जाता है, पुरुषपरिश्रम पर नहीं । वन कन जोडने से लखपती होते है यह कोई नही मानता, वितु वावाजी मन्त्र के बल हँडिया मे भरे गहनो क को दूना कर देते है या एक नोट के दो कर देते हैं यह मानने को र गाँव का गांव तैयार हो जाता है। पुराने महलो या किलो को भूतो ने . रात ही रात मे बना दिया यह विश्वास होता है, यद्यपि बडे बडे पुल ईट ईट जोड़कर बनते हुए साग्ने दिखाई दे रहे है । बाजीगर के आम की तरह कोई परम इष्ट वस्तु वर्ष मे, ह महीने ये, दो महीने मे, किसी निर्दिष्ट तिथि तक, मिल जायगी-इस श्राशा पर जो उछल कूद होती है उसका शताश भी न दिखाई दे, यदि यह वहा जाय कि दस पदह वर्ष चोटी का पसीना एडी तक व्हाकर वह मिलेगी । पारि नि के प्रलं चिक शब्दज्ञान और अपूर्व व्याकरण पर 'वड्ड कथा' मे यह क्या है कि पाटलिपुत्र में प्राचार्य वर्ष के यहाँ एक 'जडबुद्धितर' पाणिनि नामक विद्यार्थी था, गुरुपत्नी उससे बहुत कसकर काम लेती, पानी के घड़े भरवाया करती, इसका परिणाम वही हुआ जो होता है--लडका जान १. वार्तिककार तथा भाष्यकार ही नहीं जतलाते कि ये १४ सूत्र पाणिनि के नही है। भाप्य के द्वितीय आह्निक की व्याख्या मे तीन जगह कैयट उनके क्र्ता को प्राचार्य या सूत्रकार कह देता है (जो पाणिवि के लिये ही आता है) कितु तीनो जगह नागोजीभट्ट मानों कयट की प्रास्तीन इंचता है कि हैं ! सूत्रकार यहाँ महेश्वर या वेदपुस्ष है, क्या कह रहे हो । कयट तक 'तो प्रत्याहारसूत्र प्राचार्य या सूत्रकार के ही माने जाते थे। नदिकेश्पर कृत कारिका बहुत पीछे का पथ है तथा उसमे जो इन सूनो का आध्यात्मिक अर्थ किया है वह वढी खंच तान का, बौद्ध तत्रो में मातृका के महत्व के $ > .. M