पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/१०४

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१० ? FF from पुरानी हिंदी 'भागलिक आचार्य ( पाणिनि ) ने शुद्ध स्थान में पूर्वाभिमान बैंक को कुशा मे पवित्न करके मूत्र बनाए है उनमे एक अक्ष भी बन नहीं हो सकता", “सामयोग से देवता हूँ कि इस जास्त्र में भी अनर्थक नहीं है'२, 'प्राचार्य की इतनी'मी बात मह नो', 'गहने ता तुम लोक हो, किंतु प्राणिनीय होता है इसलिये जैसा रखता है दैना ( यमाया) रहने दो', इत्यादि उसके वाक्यो मे पाणिनिपूजा कितनी वनको नः थी यह जान पडता है। पाणिनि के मारे मूत्रपाठ को एक जुदा ( सहिता) पाठ मानकर, वाही उनमे चिपका अक्षर (माले) और कही प्रचलित मूत्र के दो भाग करके काम निकालना भी फा। कात्यायन और पतजलि ने इतने भारी वैयाकरण होकर भी ना " नही जमाया, पाणिनि के साम्राज्य के भीतर ही कर दिया I मगर पाया। यह व्याकरण के 'निमनि' हुए, इनका एक ही सरदाय ना इस सप्रदाय मे ऐतिहासिक विवेक को वह वात उदान्ना में भी जो और किसी हिंदू शास्त्र में नहीं चली अर्थात् 'यषोत्तर मुनीना प्रामाण्यम् । पाणिनि से कान्यायन और कात्यायन से पतजलि अधिक प्रमाण । पीर मर जाह इससे- उलटा है। अस्तु । इन तीनो ने व्याकरण खेती को लुन लिया। पीछे व्याकरण या अध्ययन नहीं रहा, पारिणनि की अध्ययन रह गया। इस सूयंत्रयो के मार्ग पण कोई उजियारा करता? टीका व्याख्यान, खडन मंडन, इनी बात पर होने कि पाणिनि ने यह क्यो कहा, यह पद क्यो रक्या । प्रान्तिको के लिये मनिट में छेडछाड करना असभव था। कुछ वौद्ध टीकाकारो ने सूत्री मे कुछ घाना गाना तो प्रास्तिको से उन्हे डाँट मिली कि हमारे पारायण की चीज मे क्षेप मि। इनके पीछे कुछ अहिंदू ( वौद्ध और जैन ) सोला चीन नेवान प.. कोई सीला जो उन तीनो लुननेवालो से रह गया था, या उनके पीछे प्रयोग में १ पाणिनि १1१1१ पर। ६।१।३का भाप्य। ३ चाद्र व्याकरण के लगभग ३५ सूत्र काशिकायारो ने नपाट मनि चाहा। कैयट ने जगह जगह पर लिखा है कि उना सागि: i २ प्रथम सूना ४. पारोमा