पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/१०८

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। पुरानी हिंदी १०७ था वह पाणिनि के टीकाकारों ने या तो उदाना से ने गिना खंच खाँचकर अपने यहां ही बता दिया । हेमचंद्र इस लेख का उद्देश्य मस्कृत व्याकरण का इनिहाल लिनती । ऊपर का कुछ विस्तृत, किंतु अपनी समझ में रोत्रका वर्णन, मका - व्याकरण की पूर्व पोठिका समझाने के लिये दिया गया है। मन: - व्याकरण सिद्धहेमचद्रशब्दानुशासन या मिहम कह नाना :, नि जयसिंह के लिये बनाया इसलिये मिद और हेमचद्र ना होने ग म । म भी चार चार पादो के पार अध्याय है जिनमें उगभग ८०० मत ढग कौमुदियों का सा है, अर्थात विषविभाग ने गत्री ना साथ में अपनी वनाई टीका वृहद्वृत्ति भी है । हेमबह का उ7 - रीति पर अपने संप्रदाय, अपने आश्रयदायक राजा तथा प्रग्ने गौरव लिये ऐमा व्याकरण बनाने का था जिसमें कोई बात न दन वह जन शाकटायन के पीछे लोक लोक चला है। किंतु र मीना बीननेवालो की तरह वह सीला बीननेवाला न था । उसने मन व्याकरणं सात अध्यायो मे लिखकर पाठवां केवल प्राकृत के पूर्ण dि, को दिया है। पाणिनि ने अपने पीछे देखकर, वैदिय नाटिन्य यामिन 'अपने समय तक की भाषा' का व्याकरण बनाया ! पीछे | स्वर छूट गण। हेमचद्र ने पोछे न देखा तो पागे देपा घर [E: इधर वढा लिया अपने समय तक की भापा का विवेचना यही हेमचद्र का पहला महत्त्व है कि प्रो. यारा पेवल पाणिनि के व्याकरण के लोक उपयोगी प्राण बदलकर ही वह मतुष्ट न रहा. पाणिनि गमान पर , . . --- देखकर अपने समय तक की भापा का व्यायशा दना गया । व्याकरण अर्थात प्रावे अध्याय ना उस रया: FAT है । सस्कृत और दूसरी प्रावृतो के व्यापार उदाहरणो की तरह प्राय वाक्य या पद ही किरा : .. १ २ देशो ऊपर पृ० ३०, दि० १, २ । पत्रिका, भाग २, पृष्ठ १६ ।