पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/११०

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। पुरानी हिंदी १०६ महारिसि० (६१) ], जैनधर्म [जेप्पि चएप्पिण. (१६५), पविण नह जिनवरहो० (१७०) ] और हास्य [ सोएवा पर वाग्निा (१५६) ]--भी के नमूने मिलते हैं । मुज (१६२) और ब्रह्म (१०३) कविया घे नाम पाए जाते हैं । कैसा सुदर साहित्य यह सगृहीत है ! पविना की दृष्टि में इतने विशाल संस्कृत और प्राकृत साहित्य मे भी, क्या भल्ला या न मरिया (३१), सइ समणेही तो मुइय (५२), लोण विनिज पानि (११५), अज्जवि नाहु महुज्जि घरि (१४४), प्रादि के जोर की पिता मिल सकती है? तीसरा महत्व हेमचद्र का यह है कि वह अपने व्याकरण पाणिनि और भट्टोजिदीक्षित होने के साथ साथ उसका भट्टि भी है। उनमें बने संस्कृत प्राकृत द्वयाश्रय काव्य में अपने व्याकरण के उदाहरण भी 73 तथा सिद्धराज जयसिह और कुमारपाल का इतिहास भी दिया। और भट्ट भीमक की तरह वह अपने मूत्रो के क्रम से नना है । मानपात्रा काव्य के वीस सर्ग है । इसमे सिद्धराज जयसिंह तय गुजरात के नाणे गाने के वश वैभव प्रादि का वर्णन और साथ ही साथ हेमचन्द्र के (मन):- नुशासन के सात अध्यायो के उदाहरण है। आठवें अध्याय ( सात बाग) के उदाहरणो के लिये प्राकृत दयाश्रय काव्य ( कुमारपालनन्ति) कीगा हुई है जिसमे आठ सर्ग है । सस्कृत याश्रय की टीया अभयनिकगणिना प्राकृत द्वयाश्रय की टीका पूर्णकलशगरिण ने लिखी है, सवत् १३०७ पगना ११ पुप्य रविवार को पूर्ण हुई । कुमारपाल चरित या प्राकृत नगर काव्य के प्रारभ मे अपहिलपुरपाटन का वर्णन है । राजा मान्पाल। महाराष्ट्र देशीय वदी उसकी कीति बखानता है। राजा को दिननर्मा, दरवार, मल्लश्रम, कुजरयाना, जिनमदिरयात्रा, जिनपूजा प्रादि के पगंन में दो सर्ग पूरे हुए। तीसरे मे उपवन का वर्णन है । बसत यो शोमा । चौथे में ग्रीष्म और पांचवें मै अन्य ऋतुप्रो के विहार प्रादि का मानणार वर्णन है। राजा और प्रजा की समृद्धि तथा विलासो का चिक पदियों को रीति पर दिया गया है। छठे मे चद्रोदय का वर्णन है। राजा दरबार: बैठा है । साधिविग्नहिक ने विज्ञप्ति की जिसमे कुण के गवा महिना की सेना से कुमारपाल की सेना के युद्ध और विजय का तपा मगिक के मारे जाने का वर्णन है। आगे कहा है कि यो कुमारपान 7 स्वामी हो गया। पश्चिम का स्वामी सिमुपति, जवनवे उप ']