पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/११२

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पुरानी हिंदी प्रायत पिता कोश भी बनाया है जिसमें प्राकृत रचना में आनेवाले देगी वो बी गणना है । सस्कृत के और कोपो में विषय विभाग में (स्वर्ग, देय मनाय आदि ) शब्दो का सग्रह होता है, या अत के वर्णों (जम सान गान श्रादि ) के वगों से। कितु यह देशी नाममाला वर्तमान फोनो मी नन्द अकारादि क्रम से बनी है इसका भी कारण वही है जो धारा में अपभ्रश की कविता पूरी उद्धृत करने का है । मस्कृत प्रान मांगो की तरह देशी कोश को कोई रटता नहीं। जहाँ मे देशी पद आ गया वहाँ देखने के लिये इन कोर का योग है। वहाँ अकारादि क्रम से ही काम चल सकता है। उस नाम के भीतर भी एकाक्षर, यक्षर आदि का क्रम है। जिस प्रक्षर ने प्रार होनेवाले शब्द जहां गिने है वहीं वैसे नानार्थ शब्द भी गिन दिए है । यही परजिन शब्दो का उदाहरण एक गाथा मै आ सका उत्तनो काढूँमा गया है । राइि.ग्रा { =नारगी, चूंघट, चादर, कान+ोढी), कठमल्ल (मुर्दे की वैली, या रिम कडतरिम = फाडा गया), कडभुग ( = गडुना ) इन शब्दों का पर गूंथ कर एक गाथा बनाने मे, जिसम कुछ अर्थ भी हो, काथ्य में मदरता पाना कठिन है । हेमचद्र ने इसपर एक मानिनीखडिता की उक्ति वनापि हे कमी से फाडे गए अघरवाले, नखो से कटे अगवाले, मेरी चादर छोट, उनी गए से स्तनोवाली के पास जा जो वैकुठी के भी योग्य नहीं है (देशोनाममाना )। इस उदाहरण बनाने की कठिनता से उसने नानार्यो को उदाहरगा गाथाएँ नही बनाई। यो ही कुमारपालचरित मे कई उदाहरण एक एक दौरे में नाग ना किंतु वहां श्रुतदेवी का राजा को धर्मविषयक उपदेश एक ही विषयमारिष कवि को बहुत कुछ स्वतन्त्रता मिल गई है। इन ६६ ध्यो में-- बदनक १४--२७, ७७, ८० दोहा २५-७४, २१ १. पादलिप्ताचार्य आदि विरचित देशी शास्त्रों के गले मीन (r नाममाला) के प्रारम का प्रयोजन 'वर्णम मुन्न' या वर्णक्रम से निर्दिष्ट शब्द प्रति से पर सुख से स्मरण मोर ध्यान किए जा सकते हैं। उलांघ कर कहने से सुख से अवधारण नहीं किए जाने. मनिर्देश अर्थवान् है। ( हेमचद्र, देशी नाममा, पुरी गान श्रम सुभग' ... टीका)।