पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/११४

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पुरानी हिंदी. ११३ इति श्री हैमव्याकरण प्राकृतवृत्तिगत दोधकार्थ समाप्त लिखितो महोपाध्या- य" य सं० १६७२ वर्षे शके १५३८ प्र. [ वर्तमाने ] वैशाख वदि १४ नी । इसमे इन सव उदाहरणो की सस्कृत व्याख्या है । अत में एक मागधी गद्य पौर एक महाराष्ट्री प्राकृत गाथा की भी लगे हाथो 'दोधक' मानकर व्यारवार दी है । जहाँ जहाँ इस व्याख्या का उपयोग किया जा सफा, किया है । हेमन्त्रद्र ने प्राकृत व्याकरण के पठन पाठन का प्रचार जैन साधुनो मे रहा इसलिये इन कवि- तामो का परपरागत या साप्रदायिक अर्थ जानने मे दोधकवृत्ति ने कही यही बहुत सहायता दी है । जहाँ मतभेद है वहाँ दिखा दिया है। दोधकवृत्ति की रचना जन संस्कृत मे हुई है, उसमे जो भाषानुग सस्कृत पद पाए हैं उनको तालिका यहाँको जाती है-- चटित.-चढा (हुआ),चटति--चढ़ता है, चटाम-हम घटें, (चरिउ, पडिओ।) लगित्वा-लगाकर (लाइ ), लगकर ( लग्गि)। वलिं क्रिये—वल जाती हूँ ( बलि किज्ज)। अर्गल-आगे बढकर ( एत्तिर अग्गलउ)! स्फेटयति ( फेडइ) धेरै, नष्ट करे । किं न सतम्--क्या नही सरा? सब कुछ सिद्ध हुमा। मुत्कलेन-दान, उदारता से ( मोक्कलडेन)। उद्धरित-(छपा है, उद्धरित )- उबरा, वचा ( उचरित्र)। उद्वय॑ते-कवर त्यज्यते ( उच्वारिज्जइ )। चूटकः-चूडा (चूडुलउ)। छन्न--गुप्त [मारवाडी छान , देखो पत्रिका भाग २, पृ०५४ मे (2011 विध्यापयति---बुझाता है। प्रावर्तते-शोपयति! ग्रावट्टः = औटना है. प्रोटाना )। जगटकानि--झगडे । धाटी-धाडा। दहे--दह मे (हद का व्यत्यय कलहापित: कलहित (ना०प्र० पलिता, भाग १.५० १०७ ।। तीगोद्वान आशुष्क -- गीला सूचा (सिंधारा)। विछोटय-विछोड़कर ( देखो पत्रिका, भाग, पृ. २६ }। पु० हि०८ ( ११००-७५)