पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/११५

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पुरानी हिंदी ११४ . $ स्ताघ--थाह। मोटयन्ति-मोड़ते हैं ( मोडति)। उदाहरणाश मे अक्षरनिवेश वही रक्खा गया है जो श्रीशकर पाडुरग पडित ने अपने कुमारपालचरित के सस्करण मे कई प्रतियो की सहायता से रक्खा है । पाठातर बहुत कम दिए गए हैं---उनके कारण मुखानसारी लेखन, असाव- धानता, उ प्रो, ऊ.ओ, स्थ स्छ आदि के लेख की समानता, परसवर्ण की अनित्यता अइ, ए, अउ, ओ का विकल्प अनुनासिक की असावधानता और अत के उ को उपेक्षा आदि हैं।' ए ओ के अर्द्ध उच्चारण को ध्यान में रखने तथा अ से 'इ' को मिलाकर ए, प्रो पढने से छद ठीक पढे जा सकते है तथा हिंदी कविता से वेगाने नही जान पडते. girl- - हेमचद्र का जीवनचरित तथा काम हेमचंद्र के जीवनचरित का कुछ प्राभास पत्रिका भाग २, पृपर्स में दिया जा चुका है। उसका जन्म सं० ११४५ मे दीक्षास १५४'मे, सूरिपदे ११६६ मे और मृत्यु स०१२२६मै हुए। उमेका जन्मनाम गर्दैव था, दीक्षा पर सोमचंद्र और सूरि होने पर हेमचद्र हुआ । सिद्धरोंज जयसिंह के यहाँ उसेने बहुत प्रतिष्ठा पाई । सिद्धराज स्वय शैव था कि सर्व धर्मों का आदर करता था। सिद्धरोज के लिये ही हेमचंद्र ने अपना व्याकरण बनाया जिसकी च की जा रही है । हेमचन्द्र के प्रभाव से सिद्धराज को मन जैनधर्म की ओर झुका हो किंतु उसके पीछे कुमारपाल के राजा होने पर तो हेमचंद्र ही हेमचद्र हो गए। हेमचंद्र कलिकालसर्वज्ञ हुए और कुमारपाल परमाहत । कुमारपाल के राज्य के प्रथम पंद्रह वर्ष युद्ध विजय आदि मे बीते । हेमचद्रे ने पहले ही कुमारपाल के राजा होने की भविष्यवाणी कर दी थी और सिद्धराज के द्वेप की संकटावस्था मे उसकी सहायता भी की थी। अब उसे जिनधर्मोपदेश करके उससे खूब धर्म प्रचार कराया । कुमारपाल के उत्तराधिकारी अजयपाल के मनी यश पाल ने मोहपराजय नामक नाटक प्रबोधचन्द्रोदय के ढग का लिखा है। उसमे वर्णन है कि धर्म और विरति कीपुत्री कृपा से कुमारपाल का विवाह स० १२१६ की मार्गशीर्ष शुक्ल द्वितीया को हेमचद्र ने कराया जिससे मोह को हराकर धर्म को अपना राज्य फिर दिलाया गया। रूपक को निकोल दें तो यह तिथि 'कुमारपाल के जैनधर्म स्वीकार करने की है । हेमचंद्र के उपदेश से सदाचार प्रचार,दुराचारत्याग, मदिररचना-पूजाविस्तार, जीर्णोद्धार, अमारिघोषण, तीर्थ- १ पत्रिका भाग २, पृ० ३२-३३ ।