पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/११७

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११६ पुरानी हिंदी व्याकरणो की प्रति है, मॅगा दीजिए । प्रधानो ने जाकर भारती की स्तुति की तो भारती ने कहा हेमचद्र मेरी ही मूर्ति है, प्रतियां दे दो प्रतियां आई । बहुत देशों से अट्ठारह व्याकरण लाए गए । गुरु ( हेमचन्द्र ) ने वर्ष भर मे सवा लाख ग्रथा का व्याकरण बनाकर राजा के हाथी पर धर, चंवर डुलाते हुए राजसभा मेला पधराया और सुनाया। अमर्षी ब्राह्मणो ने कहा कि बिना शुद्धाशुद्ध परीक्षा के राजा के सरस्वती कोश में रखने योग्य नही। कश्मीर मे चद्रकात मरिण की बनी हुई ब्राह्मी की मूर्ति है, उसके समक्ष जलकुड मे पुस्तक फेंकी जाती है। यदि बिना भीगें निकल आवे तो शुद्ध जानो, अन्यथा नही ।' राजा ने सशयाकुल होकर वहाँ भेज दी। पंडितो के सामने दो घडी तक व्याकरण कश्मीर के सरस्वती कुंड में पड़ा रहा । अविलम्न निकला। राजा को जव प्रधानो ने यह सुनाया तो. १. भास और व्यास के काट्यो की अग्नि परीक्षा के बारे मे देखो ना०प्र० पत्रिका, भा० १, पृ० १००। राजशेखर ने सूक्तिमुक्तावली मे भास के स्वप्नवासवदत्त के न जलने का उल्लेख किया है ( दाहकोऽ भून्नपावक.) और गौडवहो के कर्ता वाक्पतिराज ने शायद इसी लिये भास को जलणमित्त ( ज्वलनमित्र ) कहा है । राजशेखरसूरि (जैन) के चतुर्विशति प्रबंध में कश्मीर मे सरस्वती के हाथ मे श्रीहर्प के नैषधचरित्न रक्खे जाने और सरस्वती के उस काव्य मे अपने ऊपर किए व्यक्तिगतआक्रमण से चिढ़करउसे फेंक देने का उल्लेख है । श्रीहर्ष चिढकर कहता है है कि 'कुपितं कि छुटयते कलकात् " मेरे पास 'गन्धोत्तमानिर्णय' नामक एक खडित पोथी है जिसमे शाक्त पूजा मे मद्य के उपयोग के विधान का निर्णय है । उसमे लिखा है। कि भागवत की कई टीकाएं पानी मे डाल दी थी किंतु श्रीधरस्वामी की टीका विना गले निकली । यो ही माघ काव्य भी । गन्धोत्तमानिर्णयकार तो इस- लिये इन कथाओ को लाया है कि श्रीधर स्वमी की टीका मे लोके व्यवाया- मिषमद्य --' श्लोक की व्याख्या तथा .माघ काव्य मे वलदेव के वर्णन मे 'घूर्णयन् मदिरास्वाद०--'श्लोक उसके पक्ष मे काम देता है। किंतु पानी में डालकर शास्त्रपरीक्षा के सप्रदाय की कथा होने से यहाँ लिख दी गई।