पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/१२४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पुरानी हिंदी १२३ (३) अम्हे निन्दहु कोवि जणु, अम्हइँ वण्णउ कोवि । अम्हे निन्दहुँ कवि नवि, नम्हइ वण्णहुँ कवि ॥३७॥ हिंदी-सम = हमे निन्दो कोई जन, हमे वरनो कोइ । हम निन्दें कोई (को) भी नही, न हम वरन कोड ॥] अम्हे-अम्हइ- --पहला कर्म, दूसरा कर्ता । क्रिया से कारक का पता चलता है, विभक्ति से नही । ( ४ ) रे मण करसि कि पालडी, विसया अच्छह दूरि । करणई अच्छह रुन्धिाई, कडढऊँ सिवफलु भूरि ॥४१॥ रे मन, (तू) करता है, क्यो ( किमि ), पालडी, हे विषयो। रहो, दूर है करणो ( इद्रियाँ)! रहो रुधे हुए, (मैं) काई, शिवफल (मोक्ष), बहुत । आलडी-पाल, अनर्थ, ऊलजलल, मिलानो--म झखहि पालु (भागे न०६३ ), अच्छहु, अच्छह--दे० कपर (१), कडढउँ-निकालकर अपने बस करूं (५) सजम-लीणहो मोक्खसुहु निच्छइ होसइ तासु । पिय बलि कीसु भरगन्ति गाइ पहुच्चहि जासु ॥४३|| सयम-लीन का (को), मोक्षसुख, निश्चय, होगा, उसका (उसको)- 'हे पिया, बलि, की जाती हूँ' (ऐसा), कहती हुई, (स्त्रियाँ), नहीं प्रभुत्व (पाती) है, जिसका (जिसपर)। होसइ-होस (प्रबध न० ३ ), वलिकीसु-मैं वल जाती हूँ, बलि की जाऊँ भणन्तिअउ-भरणन्तियां, पहुचहि-प्रभवन्ति ( स०)। कउ वढ भमियइ भवगहरिण मृक्छ कहन्तिहु होइ । ऍहु जाणेवऊ जइ मणसि तो जिण आगम जोइ ॥१॥