पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/१२५

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१२४ पुरानी हिदी क्यो बढI ( मूर्ख), भ्रमा जाता है, भागवान मे, मोक्ष, कहाँ ते, होय, यह, जानने को, यदि, मन मे ( रखता) है, तो जिनागम, देख । जारऐवउँ-जाणेवो, जानवो, मणसि-मन्यसे (स.)। (७) नियम-विइणा रत्तिहिवि खाहि जि' कसरपकेहि । हुहुरु पडन्ति ति पावहि भमइहि भवलक्वेहि ।।६।। नियमविहीन, रात में भी, खांय जो कसरबको से, हुहरु करके, पड़ते हैं, वे पापदह मे, ममते है, भव (जन्म)--लक्षो मे । कसरहिं--अनुकरण, कसर कसर करते हुए, गडप गडप करते, हुहुरु- पडने या पडने के समय विलाने का अनुकरण, ति–ते, द्रह-दह, ह्रद। ( s) सम्गहो के हिं करि जीवदय दमु करि मोक्खहो रेसि । कहि कसु रेसिं तुहुँ अवहिं कम्मारम्भ करेसि ॥७॥ स्वर्ग के लिये, कर, जीवदया, दम, कर, मोक्ष के, लिये, कह, किसके, लिये, तू, और कर्माग्भ, करता है । केहि, रेसिं, रेसिं, तेहि, तणेण, प्रत्यय तादर्थ्य मे होते है (हेमचद्र ८१४१४२५) । इसका अर्थ वही है जो 'सेती' का, किसके सेती ? (६) कायकुडुल्ली निरु अथिर जीवियडउ चलु एहु। ए जारिणवि भवदोसडा असुहउ भावु चएहु ॥७२॥ कायकुटी, निश्चय, अस्थिर (है), जीवित, चचल, (है) यह, ये, जानकर भव (ससार) दोष, अशुभ, भाव, त्यजो । कुड्डल्ली, जीवियडउ, दोसडा मे उल्ल, अड, ड स्वार्थिक हैं । (१०) ते धन्ना कन्नुल्लडा हिउल्ला ति कयत्थ । जो खणिखणिवि नवुल्लडन घुण्टहिं धरहिं सुअत्थ ॥७३॥