पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/१२७

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द्वितीय भाग ( ढोल्ला सासला धरण.चम्पा-बण्णी।--- रणाइ सुवण्ण-रेह कस-वट्टई दिण्णी ।। ढोला तो साँवला है नायिका चपक के वर्ण की है, मानो सुवर्ण की रेखा कसौटी पर दी हुई हो। IT) IT - of=77,531 ढोल्ला--स० दुर्लभ, नायक, मारवाडी गीता मे टोली बडा प्रेम की शब्द है, 'गोरी छाई छै रूप ढोला धीरी धीरों प्राव घिरण-गृहं को स्वामिनी चौका- नेर की ओर अव-भी-स्त्री-को-धन कहते हैकाथान--प्राय पुजास्या गणगोर सुदर घण! जावा यो जी'; (मारवाड़ी गीत) । -रणाई-नाई, स.:: ज्ञा:धातु से, जाना जाता है ।-रेह-रेख ! कस-वट्ट-स० कपपट्ट, कसवही कसौटी। दिण्णी-दीनी। 7- - - इमी भाव का एक दोहा कुमारपाल. प्रतिवोध--म से दिया जा चुका है (पत्रिका भागर, पृ० १४५) दोधकवृत्ति के कर्ता ने वृथा ही व्यग्य को खोलकर इस चित्र का आनद विगाड दिया है कि "विपरीतरतौ एव एतत् उपमान । सभाव्यते । 11 (२) ढोल्ला मइ तुहु वारिया (यो) मा कुरु दीहा मारण । निद्दए गमिही रत्तडी दडवड होइ विहाण ढोला। मैने, तूं बारा ( = निवारण किया ) है, मत, कर, दीर्घ, मान, नीद से, जायगी, रात, झटपट, होता है, विहान ( = सवेरा) नायिका नायक को मनाती है। यह दोहा वररुचि के प्राकृतप्रकाश की प्रति मे पहुंच गया है जिससे तथा प्राकृत व्याकरणकार वररुचि तथा वार्तिककार कात्यायन को एक समझने से एक विद्वान् भ्रम से इस कविता को बहुत पुरानी मान बैठे है। पुरानी पोथियो से जिन्हें काम पड़ा है वे जानते हैं कि पढते समय उदाहरण टिप्पणी आदि पन्ने की आयु पर लिख लिए जाते है और उस पोथी से प्रति उतारनेवाला उन्हें मूल में