पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/१३०

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पुरानी हिंदी १२९ । । जै- महु दिण्णा दिप्रहडा दइए पर्वसन्तेण! तारण गररान्तिय प्रगलिउ जज्जरियाउ नहेण ।। जो, मुझे, दीन्हें, दिवस, दयित ने, प्रवसते ( प्रवास पर जाते हुए) ने तिन्हें गिनती ( हुई ) की, अगलियां, जर्जरित ( हो गईं), नख से। पति ने प्रवास पर जाते समय बता दिया था कि इतने दिनो मे लौटूंगा। वह समय बीत जाने पर, यह देखने के लिये कि मेरे गिनने मे कोई भूल तो नही हो गई, गिनते गिनते बंगलियां घिस चली। 'गिरणता गिणता घस गई आंगलियां री रेख' (मारवाड़ी दोहा) । महु-मोहि, दिग्रहडा-धियाडा, देखो पहले पत्रिका -- भाग २, पृ० ३५ । दइएं-दयितें (पंजाबी ) कर्ता का एं,-राजें गद्दण व्याही, हिंदी मई, मैं । (E) सायर उप्परि तणु धरइ तलि घल्लइ रयणाई। सामि सुभिच्चुवि परिहरइ सम्माणेइ खलाइ ।। सागर, ऊपर, तृण, धरै ( है ), तल मे, घालता ( = रखता या भेजता) है, रतनो को, ( यो हो ) स्वामी, सु-भृत्य को भी, परिहर ( = छोड़ता है) संमानित करता है, खलो को। (१०) गुणहिं न सपइ कित्ति पर फल लिहिया भुञ्जन्ति । केसरि न लहइ बोड्डिअवि गय लक्खेहि घेपन्ति ।। गुणो से, न, सपत्ति, कीर्ति, भले ही (हो जाय), फल, लिखे हुए, भोगते हैं ( लोग), केसरी, न, पाना है, कोडी भी, गज, लाखो से, लिए जाते हैं। सब अपना अपना लिखा हुआ कर्मफल भोगते हैं। गुणो से सपत्ति नहीं मिलती, कीर्ति भले ही मिल जाय । सिंह को कोई कौडी को भी नहीं पूछता, हाथी

लाखो रुपये देकर खरीदे जाते हैं। घेप्पन्ति---

ग्रहण किए जाते हैं, मराठी घ्या --(सं० नह.)..संपइ-क्रियापद हो तो संपै-सपन्न होवे, कीर्ति उसका कर्म । .. ११) वच्छहे गृहइ फलई जणु कडुपल्लव वज्जेइ ।।.. Pr) • तोवि महदुमु सुअण जिवं ते उच्छङ्गिा घरेइ-॥ पु० हिं० (११००-७५) 112-RT-TFIT • IF .