पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/१३५

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१३४ पुरानी हिदी - निज मुख करो (किरणो) से, भी, मुग्धा, कर, अंधियारे मे; देखती है, शशि मडल की चांदनी से, फिर. क्यो, न, दूर पर, देखती है ? मुख को चद्रमा की उपमा दी जाती है उसी के उजास से उसे हाथ अँधियारे मे दिखाई देता है तो चाँदनी मे क्यो न दीखे? मुद्ध--मुद्धि, मुग्धा । पडिपेक्खइ---प्रतिपेक्षते (स.) । चदिमा-चाँदनी । पुणु-पुनि । (२८) जहि मरगय कतिए सवलिन । जैसे मरकत-काति से सवलित (मिला हुआ). ( २६ ) तुच्छ मझ्झहे तुच्छजम्पिरहे। तुच्छच्छ रोमावलिहे, तुच्छराय तुच्छ्यर-हासहे, पियवयणु अलहन्तिहे, तुच्छ-काय-वम्मह-निवास है, अन्नु तुच्छउँ तहे धरणहे त अक्खरणह न जाइ । कटरि थणतरु मुद्धाहे जे - मणु: विच्चिरण माइ !, f, -"दूती नायक से कह रही है- हे तुच्छ राग, शिथिल प्रेमेवाले ! जिसका मध्य भाग तुच्छ है, जो तुच्छ (मित) जल्पन (भाषण) करती है, जिसकी रोमावलि तुच्छ और अच्छी है, जिसका हास तुच्छतर है, जिसके तुच्छ काय मै मन्मथ का निवास है, जो प्रिय के वचन नही लभती (पाती) है, ऐसी उस धन (नायिका) का जो (कुछ) अन्यं तुच्छ है वह प्राखा (कहा) नही जाता (अर्थात् इतना तुच्छ है कि मानो है ही नही), वह यह कि उस मुग्धा का स्तनातर इतना तुच्छ है कि बीच मे मन भी नही मानता। प्राश्चर्य है ।। दोधकवृत्तिकार ने इसे युग्म लिखा है पर यह एक ही रड्डा छद है ऐसे छद सोमप्रभसूरि की रचना में मिलते हैं (देखो ना० प्र० पत्रिका, भाग २- पृ० १५१ और २२५-६) । इसमे नायिका के विशेषण प्रायः बहुश्रीहि समास हैं और हे (= उच्चारण मे हैं) सबध कारक के चिह्न हैं, तहे धरणहे - तह धणहँ: - उस (का) धन का । जम्पिर-चोलनेवाला। रायराग, प्रेम । तुच्छयर - तुच्छतर । अलहन्ती-अलभन्ती (स०) । वम्मह-देखो ऊपर (२२), मन्मथ, कामदेव । अन्न-पान । जु-जो। अक्खरण-आखना कहना कटरि-पाश्चर्यवाचक । 7