पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/१३६

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पुरानी हिंदी मुद्धडा-मुग्धा, 'ड' अल्पवाचक- जे-जिससे। चिच्चि-बीच, पजावी-विच्च । माइ-समाई। । 1 (३०) फोडेन्ति जे हियड अप्पणउताह पराई कवण घण । रक्खेज्जहु लोअहो अप्पणा बालहे जाया विसम थरण ।। फोडते हैं, जो यिडा (को), अपना (को), उन्हें, पराई, कौन, घृणा (दया) (हो सकती है) रक्षा करो, हे लोगो। अपने को, (क्योकि) बाला के, जाए (उपजे) हैं, विषम (ऊँचे), स्तन । यहाँ 'वालहें' का अर्थ 'वाला के' किया है किंतु हेमचद्र इसे पचमी या अपादान (डसि) कहते हैं याने बाला से उपजे हैं । घरण-घृणा, दया । थरण- अब भी पशुओ के लिये व्यवहृत है। (३१) भल्ला हुअा जु मारिया, बहिरिण महारा कन्तु लज्जेज्जं तु वयसिमहु जइ भग्गा धरु एन्तु॥ भला, हुआ, जो, मारा (गया), बहन ! मेरा, कत, लजाती (मैं), तो, (एक)- वयसै-वालियो (सखियो) से, यदि, भागा, घर, प्राता (वह)। प्रसिद्ध दोही है। भग्गा भग्न, हारा हुआ, 'भागा । वसिमहु-वयस्यानो से या का (सं०) वयस् = वैस उम्र। लज्जेज-लजीजती, लजाती । (३२) वायसु उड्डावन्तिमए पिउ दिटाउ - सहसत्ति अद्धा वलया महिहि गय फुट्ट तडत्ति ॥ वायस (कौआ), उड़ाती {हुई) ने, पिय, दीठा (देखा), सहसा इति, प्राधे, वलय (कडे, चूडियाँ) मही पर, गए, प्राधे फूट, तड् इति (इस आवाज से ) । प्रसिद्ध दोहा है इसकी व्याख्या और रूपांतर पृ० १५ मे दिए गए है। उड्डावन्ती-उडा (व) ती। दिट्ठउ-दीठो । अद्ध-प्राधा, स० अर्ध । (३३) कमलई मेल्लवि अलि-उलई करि-गण्डाई महन्ति । असुलहमेच्छण जाहं भलि ते गवि दूर गणन्ति । श्रद्धा । .