पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/१३७

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१३६ पुरानी हिंदी कमलो को, छोडकर, अलिकुल, करियो के गंड (स्थलो) को, चाहते हैं, असुलम (की) चाह, जिनके, भली, (होती है) वे, न भी, दूर, गिनते हैं। मेल्लाव-छोडकर, महन्ति-वाहते है। मेच्छण-चाहने को, भलि-बढ़ी, पादपूरक भी हो सकता है। (३४) भग्गउ देक्खिवि निमय-वलु बलु पसरिअउ परस्सु । उम्मिल्लइ ससि-रेह जिवं करि करवालु पियस्सु ॥ भागा, देखकर, निज, वल ( सेना) को, बल, पसरा ( = फला) हुआ, पर ( = पराए) का, उमिलती (%3D खिलती) है, शशिरेखा, जिमि, हाथ मे, तलवार, पिया के भग्ग-भागा और भांगा। निप्रय-निजक, पसरियउ-पस- रियो । उम्मिल्लइ-उन्मीलति (स.) । (३५) जइ तहो तुट्टउ नेहडा भइ सहु नवि तिल-तार । त किहे वडकेहिं लोगणेहिं जोइज्जउं सय-वार॥ यदि तेरा, टूटा (है), नेह, मुझसे, साथ (= मेरे से), ही, तिल (सी आँख की) तारा-वाले !, तो क्यो (मैं) बाँके, लोचनो से, जोही जाती हूँ', सौ बार ? 'न वि' केवल पादपूरक है। स्नेह टूटा है तो ताक झांक क्यो करते हो तहो-तुह, तुम । तुट्टउ-मारवाडी 'तूटना' मे स० बुट् की श्रुति है। तिलतार-तिल जैसी काली या स्निग्ध तारा ( आँख की पुतली ) है जिसके । जोइज्जउं-जोही जाती हैं। - T जहिं कप्पिज्जइ सरिण सरु छिज्जइ खग्गिणं खग्गु । तहिं तेहइ भंड-धड-निवहि कन्तु पयासइ मग्गु ।। जहाँ, कटता है, शर से, शर, छिदता है, खड्ग से, खड्ग, तहाँ, तैसे, भटः घटा-निवह (वीर-सेना-समूह) मे, कत, प्रकाशता है, मार्ग.।. जहि-तहि-ठीक अर्य जिसमे, तिसमे । कपिज्जइ-कपीजता है, कटता है, मारवाड़ी मे कापना = काटना, कापी = कटा टुकडा (शाक प्रादि का)। छिज्जइ- छीजता है (स०) छिद्यते । भेडे-देखो प्रबंध चिंतामरिण के अवतरणो मे नं० १४ (पृ०४) पयासति-प्रकाशित करता है, उजासता है, निकालता है । 1