पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/१४३

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१४२ पुरानी हिंदी नायिका अन्यासक्त नायक को कहती है मेरा, हृदय, तेने (लिया), उस (प्रतिनायिका) ने, तू (लिया), वह भी, प्रत्य से, नटाई (नचाई) जाती हैं। पिग ! क्या, करूं, मैं, क्या, (कर) तू, मच्छ, से, मच्छ निगला जाता है। भर्तृहरि के धिक्ता' वाले श्लोक का भाव है। मच्छ मच्छ को निगलता है यह

  • मात्स्य न्याय' या 'मच्छ गलागल' प्रसिद्ध कहावत है । तइने । विनडिज्जइ-

विनडीनै । गिलिज्जइ-गिलीज । , 7 खंचकर सुख पई मइ वेहिवि" रणगयहि को 'जयसिरि तक्के । केसहिं लेप्पिण 'जम-रिणि भग 'सुह को थक्केइ ।। 'तुझमे, मुझमे, दोनो ही में, रणगतो मे, कोन, जयश्री को, तकता है । केशो से लेकर, जम की घरवाली को, कह, सुख, कौन, रहै ? (जब हम तुम लडने चलते हैं तो कौन जयश्री तो 'चोह सकता है ? कौन यमपत्नी के बाल से रह सकता है। कोई भी नही।) पई मई-अधिकरण । वे-- दो। तक्केइ-तकता है ! लेप्पिण-पूर्वकालिक ! थक्केइ थाके ( 49-)157) TEST, - सपई - मेल्लन्ति महु मरण "मइ । मेल्लन्तहो तुम। - सारस जसु जो वेग्गला सोचि कृदन्तहो' 'सज्झ ॥ तुझे छोडती, का मेरा, मरण ( है'), मुझे छोडते हुए का तेरा (मरण है ), सारस I जिसका (= जिससे ); जो दूर है, वह ही कृतात का साध्य (=मारने योग्य) है । नायक को सारसकिहकर अन्योक्ति है'1 पद, मई-कर्म कारक । मेल्लती मेल्लन्त-वर्तमान - धातुज । हो-सबध का 'हो' - छद के अनुरोध से लघु पढ़ा जायगा । वेग्गला-दूरस्थ । २ 1 4 (५८). "तुम्हेंहिं अम्हेहि जे। किनकी दिट बहु अजरणे में ता तेवड्डउ समर भर । निजुड) एक्क-खणेरण 17 -; तुमसे, हमसे, जो किया ( गया .); ( वह ) दीठा, बहुत जन (मनुष्यो) से, वह तितना समर (का) भर, निजित किया गया), एक क्षणसे ( = में)। तेवडा '-तितना । जेवड़ा जितना ! तेवडो जेवडो। (देखो, प्रागे०१) ।