पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/१४४

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सुराती हिंदी १४३ . ( ye ) तव. गुरण-सपइ- तुझ मदि तुध्र अगुत्तर खन्ति । इजइ उम्पति अन्न जण महि-मडलि सिक्खत्ति ॥ तेरी गुण-सपत्ति, तेरी मति, तेरी, अनुत्तर (= जिसके कोई बड़ी न हो) क्षाति, यदि, पास प्राकर, अन्य जन, महीमडल मे सीखे ( तो ठीक है )। तक, तुज्ज, तुध्र-तेरा । उत्पत्ति-उप्पतिय, = उपेत्य (म०) । (६०) अम्हे थोवा-रिउ बहुअ कायर एम्ब भरणन्ति । सुद्धि - निहालहि गयणयल कइजण-जोण्ह करन्ति । ना हम, थोड़े, रिपु, बहुत, कायर ,यो कहते हैं, मुग्धे ! देख, गगनतल (मे) काजने, जुन्हाई, करते. ( एक चंद्रमा हो) । पाठातर के लिये देखो, सोमप्रभ नं-२८(पत्रिका, भाग २.-पृ० १४८) ।थोवा, घोडा, स० स्तोक । एम्ब- एवा (सं०), पजाबी ऐवे। जोण्ह- -स० ज्योत्स्ना हि जुन्हाई, जोन्ह-चाद ।। T) ). अम्बरण लाइवि जे गया पहिन पराया, केवि । अवस न सुप्रहि सहच्छिअहि जिवे अम्हइ, ति तेवि ॥ अपनपा, लगाकर, जो, गए हैं पथिक पराए, कोई भी, अवश्य, नही, सोते हैं, सुखासिका से जैसे हम, वैसे वे भी। अम्व[- -अपनापन, ममता, स्नेह । सुहच्छिपहि-सुवासिका (स०), सुख की बैठक, सुख की नोद, (ऊपर, ३७) । अम्हइ-हम, म्हे ( राजस्थानी)। (६२) साइ जाणिउ पियविरहिग्रह कवि धर होइ विप्रालि । रणवर मिसबकुचि तिह तब जिह दिण्यरु खयगालि ॥ (ने), जाना प्रियविरहितो को, कोई भी सहारा, होता है राति को नही, पर मयक भी जैसे, तपता है, जैसे दिनकर ( = सूर्य) क्षय (प्रलय ) काल मे । देखो, सोमप्रभ स. १८ (पत्रिका भाग २, पृ० १४४) । (६३). "महु कन्तहो वे दोसडा हेल्लि म शंखहि माल । देतहो ,हउँ पर उन्वरिन जुज्झन्तभो करवाल ।। में