पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/१४८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पुरानी हिंदी १४७ दिग्रहा (७५) जन्ति झडप्पडहिं पडहिं मणोरह पन्छि। ज अच्छइ त मारिणइ होसइ करतु म अच्छि । दिवस, जाते है, झटपट से, पडते हैं, मनोरथ, पीछे, (= निष्फल जाते है ), जो है, वह भोगा जाय, 'होगा' (यो) करता (हुआ), मत, (बैठा) रह । दिन जाते है, जो है उसे भोगो, भविष्य के भरोसे मत रहो । अच्छइ-बंगला आछे, राजस्थानी छ । माणिनइ-देखो प्रवध १४, पत्रिका भाग २ पृ० ४६, होसइ-देखो प्रवध ३, (पनिका भाग २, पृ० ३५), कुमार २३, (पत्रिका भाग २ पृ० १४६)। (७६) सन्ता भोग ज परिहरइ तसु कन्तहो बलि की । तसु दइवेण वि मुण्डियउ जसु खल्लिहडउ सीस ॥ होते हुए भोगो को, जो, छोडता है, उस (वी), कात की, बलि की जाय (उसकी बलिहारी जाइए ), उसका, देव ने, ही, मूंड दिया है, (सिर), जिसका, गजा (है। सीस । गजा कहे कि मैने सिर मुडाया तो क्या ? "विना मिलती के ब्रह्मचारी' सभी बन बैठते हैं । जो होते हुाते भोग विलासो को छोडे उसकी बलया लीज । सन्ता---वर्तमान धातुज, कीसु-मैं करूं (हेम०), तू, कर, खल्लिहडउ -~खलति, खल्वाट (संस्कृत) ! (७७) अइतुगत्तणु ज थणह सो चछेयहु न हु लाहु ! सहि जइ केवेइ तुडिवसेण अहुरि पहुच्चइ नाहु ।। अति तुगत्व (ऊँचापन), जो स्तनो का (है) सो छेवा (= टोटा,घाटा) है) न, तो, लाभ, सखि ! यदि, किसी त्रुटि वश से, अघर पर, पहुंचता है, नाथ । ऊँचे स्तन चुबन मे पाडे पाते है । छय छकना छेवा = कमी, केवइ- किसी से, कुछ से, त्रुटि, विलव, पहुच्चइ स० प्रभवति (२) समर्थ होता है दोधकवृत्ति ), हिंदी 'पहुंचना' इस व्याख्या में अधिक उपयुक्त है। (195) इत्त ब्रोप्पिण सउणि टिड पुण दूसासणु ब्रोप्पि। तो हउ जाण एहो हरि जइ महु अग्गइ द्रोप्पि ।।