पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/१४९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१४८ पुरानी हिंदी इतना, वोलकर, शकुनि, ठहरा, पुनि, दुशासन, बोला--तो, हो, जानू, यह हरि (है), यदि, मेरे, आगे, बोले । किसी पुराने महाभारत से । इत्त- एतो, द्रौटिपण-पूर्वकालिक, ब्रोप्पि--पूर्वकालिक, दोनो जगह (!). "टिउ'--जोडो अर्थात् बोल कर ठहरा (दोधकवृत्ति) । टिंड--स्थित, 2 यो । (€) जिव तिवं तिक्खा लेवि कर जइ ससि छोल्लिज्जन्तु । तो जइ गोरिहे मुह-क मलि सरिसिम कावि लहन्तु ।। जिमि तिम (ज्यो त्यो), तीखे (शस्त्र ) लेकर, किरणो को यदि, शशी छीला जाता, तो, यदि, गोरी के, मुखकमल से, सदृशता, कोई भी (कुछ कुछ), पाता (तो पाता) तिवखा- केवल विशेषण, विशेप्य गुप्त, कर,-ससि.- विभक्ति की बेकदरी से धोखा होता है कि छोलिज्जन्तु का कर्म ससि है या कर, छोल्लिज्जन्तु-कर्मवाच्य की क्रियातिपत्ति, छोला जाय, कर्मवाच्य का 'ज', मिलानो छीलना का गंवारी रूप छोलना' इसी से छोला- हरा चना, जइ - जगति (11 जगत् मे-दोधकवृत्ति), सरिसिम-सदृशता, सं० का इमनिच मिलायो कुमार(२१, पत्रिका भाग २, पृ० १४५) लहन्तु-त्रियातिपत्ति । (८०) चुडुल्लउ चुपणीहोइसइ मुद्धि कवोलि निहित्तत । जाल झलक्किमउ बाह-सलिल-ससित्तउ । अर्थ के लिये देखो कुमार २३ (पत्रिका भाग २, पृ० १४६ ) । आग पर तपाने और ऊपर से पानी की छोट पडने से दाँत की चूडी दरक जायगी । (८१) अब्भड वचिउ वे पयह पेम्मु निअत्तइ जावें । सव्वासण रिउ सभवही कर परिनता ता ॥ (१) अभ्रवाली (रान्नि ) मे, चलकर, दो, पैड, प्रेम, निबहाती (पूरा करती ) है, यो, (अभिसारिका) सर्वाशन (सर्वभक्ष = अग्नि) के रिपु (सागर) के सभव (पुन ) अर्थात् चद्रमा के, विरण, पसर गए, त्योही ।। काली बादलो से घिरी रात मे प्रेयसी चली थी कि चद्र ने सहायता की (समाधि) या (२) उलटे, चलकर, दो पैड प्रेमिका को लौटाता है (प्रवासी) ज्यो, बद्रमा के कर, फैल गए त्यो हो । प्रिया पहुँचाने आई थी प्रवासी ने उसे लोटाना चाहा। इतने मे चदा गाया । पिर कहाँ काजाना माना? अभड । सासानल