पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/१५०

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पुरानी हिंदी १४६ भभ्रः, मेवाना, या अम्प्रट्य लौटकर, व व-त्रन, चना, वेदो, पपई-पद, नियत्तइ, निपनि या निवनवति जावै ताव पावत् तावत्, परिप्रत्ता-फैले। दोधकवृतिकार ने इसके अर्य मे बहुत गोते खाए हैं--प्रभड-पोछे चलकर, ग्वचिउ-ठगकर या ठगा गया, 'प्रिया लौटाती है प्रिय को' इत्यादि । (८२) हिमइ खुडुक्कइ गोरडी गयरिण घुड़क्कई मेहु। वासा रत्ति पवासुग्रह विसमा सकडु एहु॥ हिए मे, खटकती है, गोरी, गगन मे धडकता है, मेह, वर्षा (को) रात (मे) प्रवासियो की विषम-सकट (है) यह। विसमा से जान पडता है कि संकड एकवचन नहीं है। पासु-इन् के अर्थ मे उ' (उए) । (३) अम्मि पमोहर वज्जमा निच्च जे सम्मुह थन्ति । महु कन्तहो समरङ्गाड गयघड भन्जिन जन्ति ।। अम्मा! ( मेरे) पयोधर, वन के से, (हैं) नित्य, जो, समुख, ठहराते मेरे, कत के, (जिससे) समरागरण मे, गज घटा, भाग कर, जाती हैं । वज्जम- वजूमय, भज्जिउ-भागने का ग्रामीण भाजना देखो ऊपर (६४)।- पुतें जाएं कवण गुण, अवगुण कवण मुएण । बप्पीको भुहडी चम्पिज्जइ अवरेण ॥ देखोपतिका भाग२, पृ० १६ पुत्तेजाएँ-भावलक्षण, पुत्र जाए, जन्मे से,मुएण मुए से, जा-जिसको,वप्पी की बपोतो की, भुहडी-भूमि, देखो प्रवध (१) टिप्पणी चम्पिज्जइ-चंपीज, कुचली जाय, दवाई जाय, मिलानो पगचंपी पर दवाना । ( ८५) त तेतिउ जलु सायरहो सो तेवहु विस्थारू । तिसहे निवारण पलुवि नवि पर धूठाइ प्रासारू ॥ वह, तितना, जल सागर का, सो, तितना, विस्तार, तृषा का निवारण, पल भी नही पर, दहाडसा है, असार । तेतिउत्तेतो, तेवड़-तेवडो (गुजराती), तिम-राजस्थानी तिस, तृषा धुटुअइ-अनुकरण, गर्जता है । मिलायो, राज- येखरसूरि के चतुर्विशतिप्रवध से-