पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/१५१

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। १५० पुरानी हिंदी वरि वियरो जहिं जलु पियइ घुग्घुटु चुलुएण । सायरि अत्यि बहय जल छि खारउ कि तेण ॥ वरि-वर, अच्छा, वियरि-राजस्थानी बेरा कुआ, चुलुएण-चिल्लू से, अस्थि है। 1 1 । 3 'ज दिउँ सोमगिहण असइ हि हसिउ निसकु । पिन-माणुस-विच्छोह-गरु गिलि गिलि राहु मयकु ॥ जो, दीठो, सोम (चद्र) ग्रहण, (तो) असतियो से, हँसियो (हँसा गया), -नि शक, पिय-मानसो ( के) विछोह कर (ने वाले ) को निगल, निगल, राहु मयक को । विच्छोहगरु विछोहकर, नेपाली मे 'करना' धातु का 'गरना' हो गया है 'क' रहा ही नहीं, 'ग' है ,, 'प्रकट' को शुद्ध करके प्रकट लिखनेवाले ध्यान दें। ( 54 ) अम्मीए सत्थावथेहि सुसिं "चिन्तिज्ज ' माणु । पिए : विट्ठे हल्लोहलेण” को चेनइ. अप्पाणु? ॥ --- अम्मा । स्वस्थ अवस्था (वालो ) से, 'सुख से, चीता जाता है, मान । पिया दीठे पर, हलवली, से कौन चेतता है, अपान को? स्वस्थ वैठे हो तब मान गुमान की सूझती है, पिया को देखते ही ऐसी हलवली, मचती है कि अपनी सुध भी जाती रहती है, बेचारे मान की क्या चलाई ? सुधिं-सुखि, सुख से, पिए दिढ़े-भावलक्षण - 11. (८८) । ' सवधु करैप्पिणु, ऋघिदु । मइ तस पर संभल जम्मु । जासु न चाउ न चारहडि, नय पम्हट्ठउ धम्म ॥ शपथ, करके कथित ( कहा गया), मै ( ने उसका, पर, सफल जन्म ( है'), जिसका, नात्याग, न, और नारभटी, 'न, और प्रध्रप्ट (हुमा है) धर्म सवधु कधिदु-थ की जगह ध, सभलउँ-फ के स्थान मे भ, पम्हट्ठ-भ्र, के लिए म्ह । बारहडि-बारभेटी, शूरवृत्ति । चाउ-त्याग, पम्हट्ठउ तीनों के साथ है, चाड, बारहडि, और धम्म । दोधकवृत्ति का दूसरा अर्थ 'जिसके अपव्ययो नहो, और धर्म भ्रष्ट नहीं हुआ' ठीक नहीं। -1." 1