पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/१५४

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पुरानी हिंदी १५३ के पास मे स्थित मेरा मन जैसे न जाने' भर्ता-इति गम्यते' (11) (दोधकवृत्ति ) । (६६) मइ भरिंगउ बलिराय तुहु केहउ मग्गण एह। जेहु तेहु नवि होई वढ सइ नारायणु एहु ।। किसी वामनावतार की कथा से । शुक्राचार्य कहता है--मैं (ने) भएा, चलिराज, बलिराज, तू (तुझे), कैसा, मगन (याचक) ग्रह. (है) जैसा, तैसा 1 - ऐसा बैसा), नही, होय, हे मूर्ख, स्वय, नारायण, यह (है) । वढ-मूर्ख 'मिलामो वठ (हर्षचरित) । दोधकवृत्ति कहती है कि उत्तरार्द्ध राजा बलि का उत्तर है। (६७) जइ सो घडदि प्रयावदी केत्युवि लेप्पिए सिक्छ । जेत्युवि तेत्युवि एत्यु जगि भण तो तहि सारिक्ख ॥ यदि, सो, घडे, प्रजापति, कही (से), भी लेकर, शिक्षा, जहाँ भी, तहाँ भी इसमे, जग मे, कह, तो, उस (नायिका) का सरीखा । केत्यु, जेत्यु, तेत्यु, इत्थु, कुन यन तन्न अन्न (सं०), कित्यु जित्यु तित्थु इत्थु (पुरानी पजावी), कित्ये जित्थें तित्थे एत्य (पंजाबी)। चौथे चरण का पाठ सभव है यह हो- "भए को तहे सारिक्खु-कह कौन उस (का) सरीखा है ? (६८) जाम न निवडइ कुभयडि सहीचवेडचडक्क । ताम समतह मयगलह पइ पई बज्जइ ढक्क ॥ जौं (लो), न, (नि), पडनी है, कुभतर पर, सिह ( की) चपेट (को) चटाक, तो (लो), समस्तो, मदकलो, (गजो) के, पद पद, वाज ढक्का । सिंह की चपेट लगने तक सिर पर नगारे वजते है । चडक्क--प्रनुकरण, ढक्का-एक बाजा । (६६) तिलह तिलत्तणु ता पर जाउँ न नेह गलन्ति । नेहि पराइ तेजि तिल तिल फिट्टवि खल होन्ति ।।