पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/१५८

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पुरानी हिंदी १५७ 'पावणो पही = पाहुना और पथिक, ठिपउ-टियो, व्यो, उठ्ठिाउ-- उठियो, उठ्यो। (११०) महु कन्तहो गुठ्ठिग्रहो कर झुम्पडा बलन्ति । अह रिउरहिरे उल्हवा अह अपपणे न भति ।। मेरे, कत के, गोप्ठस्थित के, क्यो भोपड़े जलते हैं, या रिपु.रुधिर से, बुझाता हैं, या अपने से, ने भ्राति (है इसमे) कत 'गोहर' सम्हालते गया है, पीछे शत्रुनो ने झोपडे जला दिए, उसकी जात से तो यही उम्मेद है कि मारेगा या मरेगा। अह अह अथ, अथ,-या"या, गुट्ठ-गोष्ठ, गुसाई जी का 'गाइ गोठ', उल्हवइ-उल्हावे, वुझावे । (१११) पिय समि कउ निहडी पिअहो परोक्ख हो केम्ब । मइ विनिवि विन्ना सिधा निद्द न एम्ब न तेम्ब ।। पिय (के) संगम मे, कहाँ नीद, पिय के, परोक्ष में, क्यो (कर नौद) ? मैं, दोनो ही ( तरह ) से, विनाशिता ( हुई ), नीद, न, यो, न त्यो। केम्ब, एम्व, तेम्व क्यो, यो, पो, किमि, इमि, तिमि, केवे , एवें, तेवें. (पजावी), में एवे है।) मइ विनिवि विन्नासिया-दोधक वृत्ति 'मया द्वै अपि विनाशिते' ! खडिउ माण। ( ११२) कन्तु जु सीहहो उपमित्र तं सीहु निरक्खय गय हणइ पियु पयरक्ख समारण ॥ कत, जो, सिंह (का= ) से, उपमा दिया जाता है, तो, मेरा, खडित । (होता है), मान, सिंह, बिना रक्षक (के), गज को, हनै पिव पदरक्ष समेत (गजो) को (हनता है) । जगल मे हाथी जिन्हे सिह मारता है नीरक्षक (विना रखनेवाले के) होते हैं रणभूमि मे उनके पैदल सिपाही रक्षक होते हैं, उन समेत हाथियो को मारनेवाले पिय को सिंह की उपमा देना मेरा मान घटाना है। उवमिमइ -उपमीयते ( स०), पयरक्ख-पद,. पियादा।