पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/१६०

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पुरानी हिंदी १५६ ( ११६) विहवि पणठ्ठ वकुडउ रिद्धिहि जणसामन्नु । किपि मरणाउ महु पिग्रहो समि प्रहरइ न अन्नु । विभव प्रनष्ट होने पर, बांकुरा, रिद्धि मे, जन सामान्य, कुछ कुछ, मेरे पिय का, शशि, अनुहरता ( सदृश होता ) है, न अन्य। चद्रमा क्षीण होता है तो कलाएँ वांकी होती है, पूर्ण होता है तो सामान्य गोल और तारापो का सा, मेरे पिया के सदृश वही है । पिया सपत्ति नष्ट होने पर अकडते हैं और सपत्ति मे नम्रता मे साधारण रहते है। विवि पणट्ठइ--भावलक्षण, बकुडउ-वांकुडो वाकुरो, जण-समान्नु जन सामान्य (समास)-मरणाउ --मनाक्, कुछ। दोधकवृत्ति 'सामान्यो लोक. ऋद्धया वक्री स्यात् 'चन्द्रस्य तारका वक्रा भवन्ति मम प्रियस्य निर्धनस्य अन्य जना वक्रा भवन्ति' आदि न मालम क्या क्या लिख गई है । (११७) किर खाइ न पिनड न विहवइ धम्मिन वेच्चइ स्अडउ । इह किवण न जाणइ जह जमहो खणेण पहुच्चद्द दूअडउ ।। निश्चय खाय, न, पिए, न, भी, देवे, धर्म मे, न बेचे, रुपया, यहां, कृपण न जाने, जैसे, यम का, क्षरण से (-मे), पहुंचे, दूत । किर-किल, बेच्चइ-व्ययति (स.)खर्च करे, इसी से बेचना, पहुच्चइ-प्रभवति (सं.) पहुँचे, रूमडउ, दूअडउँ-रूपडो, दूतडो, दे० प्रवध (१)। (११८) जाइज्जइ तहिं देसडइ लभइ पियहो पमाणु । जइ आवइ तो आरिणअइ मह वा तं जि निवारण । जाईजै, उस (मे), देसडे (मे), (जहाँ), लभ (मिल), पिय का, प्रमाण (पता), यदि, भावे, तो पानिए, अथ वा, वह, जी, निर्वाण (माना जाय) । मिल जाय तो ले प्रांऊँ नही तो वही शाति मिले । जि-पादपूरण । (११९)

जउ पवसन्ते सहुँ न गयन मुन्न विप्रोए तस्सु ।

लज्जिज्जइ सदेसडा देन्तेहि सुयजस्सु ॥ 1 ,