पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/१६२

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पुरानी हिंदी १६१ ( १२३ ) साव सलोणी गोरडी नवखी कवि विम-गण्ठि । भडु पच्चलिउ सो मर जासुन लगइ कण्ठि । सर्वसलोनी, गोरडी, अनोखो, कोई, विस गाँठ है, भट, प्रत्युत, सो, मरे, जिसके, न लगे, कठ मे । और बिसगांठ तो गले लगने से मारती है यह न लगे तो मारे इससे अनोखी। सलोणी-सलावण्या (सं.) सलोनी, देखो (११४), गोरडी-बहारी का गोरटी, चोरटी, नवखी सं" नवका (नबकी) पजाबी नौक्खी, (अनोखी) भाडु-मट देखो प्रव० ( पत्रिका भाग २, पृ० ४७), पच्चुलिउ-प्रत्युत (हेमचद्र ८।४४२०) । 'अनबूडे बूड़े तेरे' का भाव है। ( १२४ ) मइ वृत्त तुहं घुरु धरहि कसरेहि विगुत्ताइ । पइ विष्णु धवल न चडइ भरु एम्वइ बुन्नउ काइ । मैं (ने), उक्त (कहा)-तू, धुर (को), घर (उठा), कसरों से, विगुप्तों (धुरो?) को, ते (तुझ), विना, हे घवल ', न, चढे, भर, यो (तू) खिन्न, क्यो' धवल-धुर उठनेवाला धोरी बैल । अन्योक्ति है कि भार तू उठा, बछडो से क्या सरेगा ? धुर-आगे का भार, कसर-मठे, छोटे बैल, विगुत्त- न उठती हुई ? धवल-जो जिस जाति में उत्कृष्ट हैं वह धवल (देखो पत्रिका भाग २, पृ० २६) तथा ऊपर ४०६ १० वुन्नऊ-बुन्नो, विपादयुक्त । ( १२५ ) एक्कु कइग्रह वि न आवही अन्नु वहिल्लउ जाहि । मह मित्तडा प्रमाणिप्रउ पइ जेहत खल नाहि ।। एक, कभी, भी, न, आवे, अन्य, जल्दी, जाय, मैं (ने), हे मित्र प्रमाणिन किया, ते, (ने), जैमा, खल, नहीं । एक कमी आता नहीं, दूसरा नदी चला जाता है, मिन जैसा मैने पहचाना है वैसा तने नहीं । अस्पष्ट । यह अच्छा अर्थ होता--एक मिन्न तो कभी आता ही नहीं, दूसरा झटपट चला जाना है, हे मित्र, मैने प्रमाणित किया है कि तुम जैसा निश्चय कोई भी नहीं। वहिल्लउ-शीघ्र । पु० हिं० ११ (११००-७५) 1