पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/१६४

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पुरानी हिंदी १६३ नयनो ( को), नेह से पलोटो (को)। दोधकवृत्ति का अर्थ गडबड है। देहि- दृष्टि, डीठ, सत्ररेवि--(स०) मबरीनु, दड्ढ--दग्ध, डाढे, नेहि, पाठातर, नेहे-नेह से, पलुट्टा-लिपटे, भरे ( १३०) विहवे कस्सु थिरत्तणउँ जोवरिण कस्सु मरटु । सो लेखडउ पट्टाविअइ जो लग्गइ निच्चटु ।। विभव में, किसका, स्थिरत्व, यौवन में, किमका, मराठापन ( अहकार) है ( तो भी ) वह, लेख, पठाया जाना है, लगे, जो निचट । नायक का भरोसा नही, वैभव में किससे पाशा की जाय कि वह स्थिर रहेगा ? अपने यौवन का भी घमड नही कि वह खिच ही आवेगा, तो भी खडिता या प्रोपिता सोचती है कि ऐसा सदेसा भेजें जो तीर की तरह चुभ जाय, चैठ जाय । थिरत्तर- -स्थिरत्व, लेखडउ---लेखडो, निच्चट्ट-अत्यत गाढा । (१३१) कहि ससहरु कहिं मयरहरु कहिं परिहिए कहिं मेहु । दूरठिाहवि सज्जगह होइ असड्ढलु नेहु ॥ कहाँ, शशधर (चद्र ), कहाँ, मकरधर (समुद्र ), कहाँ, मोर, कहाँ; मेघ, दूर-स्थितो, के भी सज्जनो के, होय, असाधारण, नेह । वरिहिण- अहि, बरहि (तुलसी), असड्ढलु-स० असस्थुल (?) (१३२) कुजरु अन्नह तरुणरह कुड्डेण घल्लइ हत्यु । मणु पुणु एक्कहि सल्लइहिं जइ पुच्छह परमत्यु । कुजर, अन्यो (पर), तरुवरो पर, कोड से, घाले हाथ, मन, पुनि एक ही (पर), सल्लकी पर, यदि, पूछो, परमार्थ। कुड्ड-कौतुक विनोद, देखो ऊपर (८६) (१३३) खेड्डयं कयमम्हेहि निच्छय कि पयपह । सामित्र। अणुरताउ भत्ताउ अम्है मा चय खेल, किया (गया), हमसे, निश्चय, क्या, प्रजल्पते (कहते) हो (फ.) ?