पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/१६८

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पुरानी हिंदी सपडिय-सयोग से आ गई, विप्पियनाव-विप्रिय रुमना या दियोग वेडा। (दोधकवृत्ति)। ( 94 ) खज्जइ नउ कसरवकेहि पिज्जइ नउ घुष्टेहि । एवइ होइ सुहच्छडी पिए दिदृठे नयहि ।। खाया जाता है, न तो, कसरको से, या जाता है। न तो, बूंटो मे यो हो, होय, सुखस्थिति, पिय, दीठे (पर) नयनो से। खाने पीने की मी तो तृप्ति नहीं होती कितु कोई अनिर्वचनीय सुख मिलता हैं। खिज्जइ- खाईजै पिज्जइ-पीईज कर्मवाच्य, कसरक्क-बडे बडे ग्रास, डचके, (देखो पृष्ठ ४०२), एम्बइ-यो ही या ऐसा होने पर भी (दौ० वृ०), सुहन्छडी- (सूख + अस्ति)पना, 'डी' के नाम बनाया गया (दे० ३७, ६१, १४०)या सुखाशा (दो० वृ०), पीएदिळे- --भावलक्षण । (१४४ ) अज्जवि नाहु महुज्जि घर सिद्धत्था वन्देइ । ताउजि विरहु गवखेहि मक्कडुधुग्घिउ देइ ॥ आज भी (अभी), नाथ, मेरे ही, घर, सिद्धार्थों, को, वदना करता है, तो भी, विरह, गवाक्षो (जालियो) मे से वदर घुडकी, देता है। अभी नाय परदेश गए, नहीं है, घर ही मे है, यानाकाल के मगल द्रव्यों को निर से लगा रहे है। तो भी विरह समझ गया है कि मेरा मौका आ गया । अभी वह सदर दरवाजे से तो घुस नही सकता, जाली के मोखो मे से मानी वदर- घुड़की दिखा रहा है। अज्जवि, महिज्ज, ताउजि-में वि और जि 'कितना जोर दे रहे हैं। सिद्धत्वसिद्धार्थ पीली सरसो मगल शकुन, गया- गवाक्ष (स.) पुरानी चाल की जानियो के छेद बिलकुल गां की और के से ही होते है इसी से हिंदी गोखा-दरवाजे पर का झरोखा, मक्कन्धून्धि- वदर घुडकी, घुग्घिउ = चापल्य () (दोषकवृत्ति) । ( १४५ ) सिरि जरखण्डी लोअडी गलि मनिडान वीस । तो वि गोहड़ा कराविना मुद्धए उबईस ।। सिर पर, जीर्ण, लोई, गले मे, मनके, न, वीस, तो भी, गोठ के नियामी