पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/१६९

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१६८ पुरानी हिंदी अम्मा। (युवक) कराए, मुग्धा ने ऊठवैट । सिंगार की पूंजी तो यही है कि पुरानी कमली और गले मे पूरे बीस मनको को माला भी नहीं, तो भी लावण्य ऐसा है कि गाँवभर के छलो को उठकबैठक करा रही है। जरखण्डी-जीर्ण और खखित, लोअडी-लोई, कवल, मणिनडा-कुत्सा का 'ड', गोट्ठडा- गोठ के लिये देखो (११०) गाँव के बाहर गोस्थान जहाँ युवक ही इकट्ठे होते हैं, गोट्ठडा --वहां के निवासी, उट्ठवईस-गुजराती बसना = बैठना। ( १४६ ) अम्मडि पच्छायावडा पिउ कलहिउ विमालि। घइ विवरीरी बुद्धडी होइ विरणासहो कालि ।। पछतावा ( है ), पिया, कलहित किया, रात्रि में, अवश्य, विपरीत, बुद्धि, होय, विनास के, काल मे । मान करके पछताती है। अम्मडि-बुद्धडी-स्वार्थ मे डी, या मे अनुकपा , पच्छायावडा---यहां भी पश्चात्ताप के आगे डा है, कल हाउ-कलहिलो, कलहापित ( देखो ना. प्र० पत्रिका, भाग १, पृ० ५०७), विालि-देखो कुमार० ( १८, ना० प्र० पत्रिका, भाग २, पृ० १४४), ऊपर (६२), घइ-हेमचन्द्र ने अनर्थक कहा है, पादपूरण या अवधारण अर्थ है । ( १४७ ) ढोल्ला एह परिहासडी अइ भण कवरणहिं देसि । हउ झिज्जउ तउ केहि पिन तुह पुण अन्नहि रेसि ।। ढोला । यह परिहास ऐ । कह, किस मे, देश मे (है)? हौं, छी— तेरे लिये, पिय ! तू, पुनि, अन्य के लिये । मिलाप्रो (५५) । यह कौन से देश की चाल है? ढोल्ला-देखो (१), परिहासडी-मजाक, हँसी, या परिभाषा (दोधकवृत्ति), अइभन-दोधकवृत्ति एक शब्द मानकर अर्थ किया है पत्यद्भुत । हेमचद्र मे भी अइभन' प्रधान पाठ मना है । झिज्जउं-झीजना, झीना होना, सूखना, तउकेहि-तेरे लिये, रेसि-वास्ते (हेमचद्र ८४१४२५) ( १४८ ) सुमिरिज्जइ तं बल्लहउ जं वीसरइ मणा । जहिं पुण, सुमरण जाउ गउ तहो नेहहो कइ ना ॥ सुमरा जाय, वह, बल्लभ, जो, विसर, मन से, जिसका,पुनि सुमरन, यदि, गया उस (का), नेह का, क्या नाम ? |जिसे भूने उसे तो याद करे और जिसका स्मरण