पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/१७३

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१७२ पुरानी हिंदी ॥ अनिरिक्त से, सब, महना, होय । रक- (१) लाल (२) अनुराग मे पगा हुआ । मजीठ देस निकाला, आग पर कढना, घनो कुटाई सहती है, यह 'रक्त होने का फल है। सहेब्बउँ-सहवो, सहितव्य । ( १५६) सोएवा पर वारिया पुप्फवईहि समाणु । जग्गेवा पुण, को धरइ जइ सो वेउ पमाणु सोना, पर, वारित किया गया (है), पुष्पवतियो के साथ, जागने को, "पुनि कौन, धरता हैं (पकडता) है. यदि, सो, वेद, प्रमाण (है)। किसी शोहदे की उक्ति । जिस वेद मे साथ सोने की मनाई है यदि वही 'प्रमाण हो तो साथ जागने' को कौन रोकता है ? सोएवां जागेवा- सीबी, जागवो, वारिया--वारित, पुप्फबई-पुष्पवती, रजस्वला, पुष्प का उपचार हिंदी तक पाया है क्योकि प्रथम रजोदर्शन को फुलेरा कहते हैं । मिलामो गाथा-- लोप्रो जूरइ जूरउ बअणिज्ज होउ सन्नाम । एइ णिमजसु पासे पुप्फइ एण एइ मे णिहा ॥ (सरस्वती कठाभरण ३२६) [ लोग खिझे, खिमें, बचनीय (निदा) हो तो होने दो, पा, पास लेट जा, पुष्पवती! मुझे नीद नही आती। ] ( १६०) हिअडा जइ वेरिन घणा तो कि अभि चडाहु । अम्हाहि वे हत्थडा जइ पुणु मारि मराहु ॥ है हिय ; यदि, वैरी, घने ( है ) तो, क्या प्रकाश में चढं ? हमारे (भी) तो, दो, हाथ (है), यदि, पुन भारकर, मरें । अभि-अन मै शन्नुओ से बचने के लिये धरती छोड आकाश को चले जायं क्या ? दो हाथ तो है, मारकर मरेंगे । ( १६१) रक्खइ सो विसहारिणी वे कर चुम्बिधि जीउ । पडिविविअमुजालु जलु जेहिं अडोहिउ जीउ ॥ है