पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/१७८

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१७७ (१७४ ) सिरि चडिया खन्ति प्फलइ पुणु डालड मोडन्ति । तो वि मद्ददुम सउरणाह अवराहिउ न करलि ॥ सिर पर, चढे, खाते हैं, फलो को, पुनि, डालो को मोडते (तोडत) हैं, तो, भी, महाद्रुम शकुनो (पक्षियो) को, अपराधी न, करते हैं। महापुन्यो की क्षमा। मोडन्ति-स० मोटयन्ति, तोडना फोडना । 'शकुनियो का अपराध (विगाड) नही करते' ( दोधकवृत्ति)। ( १७५ ) सीसु सेहरु खरए विरिणम्मविदु खण कठि पालवु विदु, रदिए विहिद खरण मुडमालिये ज पणएण त गमन कुसुमदामकोदण्ड कामहो । इस गद्य में इस बात का उदाहरण दिया है कि अपनश में गौरसेनी की तरह कुछ काम होता । और कुछ खड पीर गाथा इनलिये दिए गए हैं कि अपभ्रश में व्यत्यय और कई प्रयोग सस्कृत के से होते है। उन अवतरणो को यहाँ देने का कोई प्रयोजन नही ! इस गद्य को अर्थ यह है- सीस पर शेखर क्षण (भर के लिये) विनिर्मित भरण (मे) कठ में प्रालब (लबी माला) कृत, रति ने विहित क्षण में मुद मालिका मे जो प्रणय में, उसे नमो कुसुमदाम-कोदण्ड को, काम के (को) । काम का फूल-धनुष कभी रति अपना सीमफूल बनाती है कभी गले में लटकाती है कभी मूंड पर माला की तरह पहनती है, उसे प्रणाम करो। सेहरु-शेखर, सेहरा, विडिम्म- विदु-स० विनिर्मापित, पणएण-प्रणय से, इसे दोधकवृत्ति 'नम' का विशेषण मानती है । हेमचद्र के व्याकरण के इस अश में जो शब्द उदाहरण वत् दिए हैं उनका यहाँ उल्लेख निष्प्रयोजन है । जो वाक्यखड पाए हैं उनमे से कुछ के विचार के लिये पृथक् लेख का उपयोग किया जायगा ।