पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/१७९

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१७८ पुरानी हिंदी परिशिष्ट ऊपर पत्रिका भाग २, पृ० ४६ तथा १५० मे यह भ्रम से लिखा गया है कि 'कारण वि विरह करा लिहे' प्रादि दोहा हेमचद्र में है। यह हेमचद्र मे नही है । उस दोहे का अर्थ स्पष्ट नही था । उसका ठीक अर्थ करने का यत्न किया जाता है । मूल । कारण वि --विरह करालि -(यइ) उड्डाविनउ-वराउ । कीई वि इ सहि -~-अच्चन्भुउ दिट्ठ मइ कठि विलुल्लइ काऊ । इउ विरहाकुलिता कौए को उडाया करती है कि हमारा पति प्राज आता हो तो उड जा। जहां कई विरहाकुलिता हो वहाँ कौए की शामत आ जाय । इधर गया तो एक उडावे, उधर गया तो दूसरी, कही बैठने को ठौर ही नही पावे । वेचारा कष्ट मे अधर मे झूल रहा है कि किधर जाऊँ । कुछ का ( - से), विरहकरालिताओ का ( =से ), पै, उडाया गया, वराक, हे सखि या यह, अत्यद्भुत, देखा, मै ( ने ), कष्ट मे, विलुलता है, काक । कारण-सवध बहुवचन, कठि-कट्ठि ( देखो पनिका भाग २, पृ० ४० ) कष्ट मे, विलुल्लइ-मारा मारा फिरता है, मँडराता है, काउकोमा । पहला अर्थ शास्त्री तथा टानी के भरोसे पर किया था। इस नए अर्थ के मार्गदर्शन का उपकार वाबू जगन्नाथ दास (रत्नाकर) का है। । - ---