पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/१८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पुरानी हिंदी १३ 7 पुत्ते जाएँ कवणु गुण अवगुण वक्षण मुएरण । जा वप्पी की भुहडी चम्पिज्जद प्रवरेण ॥ [ उस बेटे के जन्म लेने से क्या लाभ और मर जाने ने क्या हानि कि जिसके होते बाप की धरती पर दूसरा अधिकार कर ले ।] इस दोहे का परिवर्तन होते होते यह स्प हो गया है- बेटा जायां कवण गुण अवगुण कवण धियेण। जो ऊभा घर पापणी गंजीज' अवरेण ॥" यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि मूल दोहे मे 'मुये पुत्र ने क्या अवगुण' कहा गया है किंतु पीछे, स्त्री जाति की अोर अपमान बुद्धि यद जाने और उसका उत्तराधिकार न होने से 'धी (=पुन्नी, सस्कृत दुहित, पंजावी धी) से क्या अवगुण' हो गया है । प्रस्तु, ऐसी दशा मे जो पुरानी कविता या गद्य सस्कृत और प्राकृत के व्याकरण और द आदि के ग्रथो मे, बच गया है, वह पुराने वर्णविन्यास की रक्षा के साथ उत्त समय की भाषा का वास्तव रूप दिखाता है। इस सथा अग्निम लेखो मे 'दोहाविद्या' के उदाहरण सत्रह किए जायेंगे । आवश्यक कथाप्रसग तथा मूल का परिचय दिया जायगा । पुगने शब्दो के वर्तमान रूप और पुछ तारतम्यात्मक विवेचन दिखाया जायगा । पासातरो मे से उतने ही दिए है जिनमे विशेषता है । लेसको ने हन्य दीर्घ १ घी से, पुत्री से। २. खडे पड़े । ३. पृथ्वी, घरा। ४. गजन की जाय, जीती जाय । ५ मलसीसर के ठाकुर श्री भूरतिहजी का विविध सग्रह, पृ ४ | इस संग्रह में यह दोहा तथा 'एहि ति पोडा एहि पल--' वाला. दोहा गकुर साहब ने कविवर हेमचद्र के नाम से दिया है. गितु ये हेमचद्र की रचना नही है, उससे पहले ये है, उसने अपने व्याकरण मे उदाहरण को तरह और बहुत सी बविता के साथ दिए है। 'एहि ति घोडा' को चर्चा यथास्थान होगी।