पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/१९

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i पुरानी हिंदी का व्यत्यय किया है वह ज्यो का त्यो रहने दिया है, छद के अनुसार पढना चाहिए जिन्मा जाणादि छैदो। पाठातरो से जान पडेगा कि कोई लेखक "पुरानो अक्षरयोजना को रखता है, कोई प्राकृत की चाल पर चलता है, कोई मॅजी हुई:-देशभापा को रीति पर प्रा उतरता है। (१). शाङ्गधर पद्धति से शाङ्गधर नामक कवि ने एक सुभापित संग्रह शाङ्गधर पद्धति नामक बनाया है । वृक्षायुर्वेद.और वैदक के भी - उसके प्रथ प्रसिद्ध हैं । उसने अपना परिचय यो दिया है कि शाकभरी देश के चाहुवाण राजा हमीर के सभासदो मे मुख्य राधवदेव थे । उनके गोपाल दामोदर और देवदास नामक 'पुत्र हुए । दामोदर के पुत्र 'गाङ्गवर, लक्ष्मीधर और कृष्ण थे।' यह हमीर रणथभौर का प्रसि हमीर है जो अलाउद्दीन खिलजी से सवत् १३५७ मे वडी वीरता से, लडकर परास्त हुआ। चौहानो की राजधानी पहले शाकभरी (सांभर) थी, जिससे अजमेर मे प्राने पर भी वे शाकभरीश्वर ही' कहलाते रहे । पृथ्वीराज के पुत्र गोविद ने शहाबुद्दीन गोरी की अधीनता स्वीकार करें ली जिसमे उसके चचा हरिराज ने उसे निकाल दिया। 'वह रणथंभोर में जाकर राज्य जमा कर बैठा । उसोका प्रतिम सातवाँ वर्गधर हमीर था। उसके सभासद के पौत्र का उसे शाकमरीप्रदेश का स्वामी कहनों ऐतिहासिक और उचित है। यो शार्ङ्गधर का समय विक्रमी संवत् को चौदहवी शताब्दी का अत हुआ। शाङ्गधर पद्धति से कई जगह उस समय की वोलचाल की भापा के मन, शब्द और वाक्य दिए है जो उस समय की दिदी के नमूने हैं। शाङ्गधर पद्धति में (१) एक विप हटाने का शावर मनं दिया है। (पीटर्सन का सस्करण, न० २८७०)। शावर का अर्थ वहाँ यह दिया है कि जब शिव ने शवर (किरात) रूप से अर्जुन से युद्ध किया उस समय जो मन उन्होने कहे थे वे शाबर मन हैं। वे वैमे ही मत्र हैं जिनके लिये गुसांई तुलसीदास जी ने लिखा है कि 'अनमिल पाखर अरथ न जापू । प्रकट प्रभाव महेश प्रतापू।' दहने हाथ में पानी का बरतन लेकर बाएँ हाथ अनामिका से सात बार मन पहर उमे हिनाकर जिसे वह जल पीने को दिया जाय वह तत्क्षण निर्विषः हो। जाता है। (न० २८६८-६) मन यह है- . !! ।