पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/२०

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पुरानी हिंदी १५ -- ओ गुरु के पाय शरणम् । प्रो चवि चवि चारि भार विसुमाटी ॥ ( - कह, कह, विप की मट्टी के चार भार, चव = कहना, यथा मुफपि चद सच्ची चर्व) (२) न० २६४२ मे साँप के विप से बचने का यह मन्त्र दिया है। इने सात बार पढकर कपड़े में गांठ दे ले, जब तक वह गांठवाला वम्ब देह पर रहेगा तब तक साँप से भय न हो- श्रो दष्ट कर अष्ट कर कालिंगनाग हरिनाग । सर्प डुण्डो विसु दाढ बन्धन शिवगुरु प्रमाद ।। (डुण्डी = डुण्डुभ, निविप, जल का सांप, विसु विप, दाह = दष्ट्रा) (३) न० ३०१८ में टीडी, सारस, तोते, मुअर, हरिन चूहे, खरही को खेती से हटाने का मन दिया है-- श्रो नम सुरेभ्यो बल बल ज ज चिरि चिरि मिलि मिलि म्वाहा ! ' (ज = जा, जादूगर अब तक 'इरि गिरि चिरि' कहा करते है।) (४) न० ३०१६ मे लिखा है कि मन जाननेवाला धनुष की नोक ने अपने साथ (सार्थ, कारवा) के चारों ओर रेखा ने कुडल बने और इस गावर भन्न का जप करे तो सिंह से रक्षा हो- नदायण' पुत्त' मायरिउ पहार' मोरी क्षिा कुरमुर जिम धीर दुल्लावई उरहइ पुछी परहई मुहि' जाह" रे जाह । पाठ सकता । १ नद का। २ पुन्न । ३, सायरी का? ४. पहाड । ५ मेरी। ६. पूंछ। ७. डुलाता है, हिलाता है, सस्कृत दोलापयति (1) 5 और रहता है ? ६. छोडता है ? १० मुझे। ११ जा। १२ साल ।