पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/२१

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१६ पुरानी, हिंदी -- करि उर' बन्धउ' वाघ-वाघिणी कउ', मह बन्धउ कलियाखिरणी' की दुहाई महादेव की पूजा पाई टालहि जई प्रागिली विष देहि ! (५) न० ३०२०-३०२२ मे कहा है कि जोर से बोलला' कहने से जहाँ तक शब्द सुनाई पडे.वहाँ तक मिह ठहरता नही । शवर की स्त्री, इस मत्र को पढे तो चुगुलखोर, सिह, चोर, अपमृत्यु और वाण से रक्षा होती है, तर्जनी अंगुली से आठो दिशानो मे इस मन से रक्षा करे या मनित करके 'कर्कर- (ककरियां या कौडियाँ) आठो दिशाओ की ओर फेंके- ओ पाडू चूडू वाढी कोडी चोर चाटु कालु कांडु वाघ स्वाहा । (६) भाषा चिन्न मे एक श्लोक (न० ५४६ ) दिया है जिसमे कई हिंदी शब्द आए है। श्लोक संस्कृत का है और सघि आदि से उसका ठीक सस्कृत अर्थ होता है । चमत्कार यह है कि पढते समय धोखा होता है कि सस्कृत मे अपभ्रश कैसे आ गए। पुराने ग्रथो मे ऐसे चमत्कार के लिये जो श्लोक दिए जाते थे उसमे सस्कृत मे प्राकृत-बुद्धि हो जाती थी, अर्थात् संस्कृत और प्राकृत दोनों अर्थ निकलते थे, कि इस श्लोक मे प्राकृत का स्थान हिदी ने लिया है- उत्सरगकलितोरू कटाराभाजिराउत भयकर भाला.. सतु पायक गणा जयतस्त्व गाम गोहर मिलापइलावी ।। इसमे और हिंदी शब्द तो देखने में ही हिंदी है, जैसे उरूकट + अरि+ इभ+ प्राजि+रा, किंतु पायक ठीक हिंदी अर्थ (सेवक) मे व्यवहृत हुआ है (सो किमि मनुज ..."जाके हनूमान से पायक- -तुलसीदास)। (७) वही पर भापाचिन का एक नमूना और (न०५५०) दिया है जिसमे कुछ सस्कृत है, कुछ हिंदी । इसका कर्ता श्रीकठ पडित है और इसमें श्रीमल्लदेव राजा की वीरता का वर्णन है कि उसकी सेना के जोधा मार- काट चिल्ला रहे है वैरिनारी अपने से कह रही है कि घमड छोडकर मल्लदेव की शरण जायो । - 1 १ छाती । १. बांधू । ३. को ( = का) ४. कलि यक्षिणी। ५. मुझे टाल कर जा। .