पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/२४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पुरानी हिंदी १९ . F सेवेल ने गणित से सिद्ध किया है कि गुजरात के चौबई राजामों के सवत् प्रादि मेरुतुग ने अशुद्ध लिखे हैं और मिति, वार, नक्षत्र, लग्न सव - गडबड दिए हैं, उनका ऐतिहासिक मूल्प कुछ नही है। पुरानी घटनामो के बारे मे चाहे कितनी ऐतिहामिक गड़बड हो, सपने ममीप के काल की घटनाएँ तो मेरुतुग ने, जहाँ तक वे प्रवध की पुष्टि कर सकती है, प्रामाणिक हो लिखी हैं। सिद्धराज जयसिह, कुमारमाल, हेमचद्र, वस्तुपाल, तेजपान का काल गुजरात मे संस्कृत और प्राकृत को विद्या तथा जनधर्म के प्रचार का । स्वर्णयुग था। भोज के समय धारा मे जो विद्वानों को ज्योति चमको यो वह दो ढाई सौ वर्ष पीछे पश्चिमी गुजरात में भी देदीप्यमान हुई। उस - समय की बातें जैनो के गौरव को है और उनकी संरक्षा उन्होंने बहुत - सावधानी से की है। प्रवप्रचितामणि के एक ऐसे हिंदी अनुवाद की आवश्यकता है जिसमें ऐतिहासिक और शाब्दिक टिप्पणियां हो। इस पथ को भापा सस्कृत है कितु वह सस्कृत भी देशभाषाप्रो की उत्पत्ति और विकास के समझने में उपयोगी है। इस समय की 'जैन सस्कृत' मे एक मनोहारिता यह है कि जन - लेखक गुजराती या देशभाषा में सोचते थे मोर लिखते पे संस्कृत में । । परिशिष्ट पर्व ११७५ मे हेमचद्र लिखते है कि 'स काल यदि कुर्वीत को (का) लभेत ततो गतिम्' । मरने के अर्थ मे 'काल करना' सम्मृत फा महाविरा तो है नही, देशभाषा का है। मजे छंटे सस्कृत के प्रेमी इसे - बर्वर संस्कृत कहें किंतु यह जीवित संस्कृत है, इसमे भापापन है। रुचि 4 को तो बात है, किसी को कश्मीर की कुराई के काम से सजा अखरोट की ३ लकडी का सुदंग तस्ता अच्छा लगता है, किसी को हरी कोपलो मे नदी- । फो टेढी टहनी । यहाँ कुछ शब्द और वाक्य इस संस्कृत के दिए जाते हैं, । जिनपर ऐसा चिह्न है |वे अन्यन शिलालेखो, माव्यो प्रादि में भी देखने में पाए हैं- 1 छुप्तवान्-छुमा। उच्छीपंक---तकिया, मोमीसा (राजस्थानी, वारण को कादंबरी) करवडी--दोनो हाथ मिलाकर पानी पीने के लिये पान सा बनाना करपुटी)। 3 १ राय० एशि० सोसा० जर्नल, जुलाई १९२०, पृ० ३३६ मादि । 1 F