पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/३४

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पुरानी हिंदी २६. फिसलती जमीन पर कैसे आनोगे इति दिक' किंतु यह दिशा नहीं दिशाभूल है। सीधी बात यह है कि गमियों' मे डोरी सूख जाय या ढीली हो जाय तो बरसात मे मुलायम होकर तनती है (ग्रान गाँठ घुलि जात त्यो मान गांठ छुटि जात--- बिहारी ) सो बरसात होने पर तो तुम्हें बिना आए सरेगा ही नहीं, नाक के बल आमोगे, किंतु फिसलती जमीन मे जैट कैसे चलेगा? इसलिये अभी से पाते रहो। बरसात मे ऊंटो को चलने में कष्ट होता है जैसा कि एक मारवाडी दोहा है- 1 ऊँटा टेधा टेरडा गुड गाडर गाटांह । सारा दोहरा'पावशा मैंडक वोल्या नाडाह ।। ऊँट, 'धकरें, बैल, गुर्ड, भेड और गाडे, ये सर्व कठिनाई से पायेंगे। मैंटको के नाडियो (तलैयाओ) में बोलने पर। श्रा, माह--कर्ता का बहुवचन; दोहरा-(स०) दुष्कर, वोल्या नाडाह-भावलक्षण ( सप्तमी ) डल्ला - (स०) स्खलिता, (7) सूखी लडखडाती। दोरडो-डोरी, देशी से गढा हुपा सस्कृत दवरफी, पद्धतियो मे डोरका, सस्कृत ही बन गया है । बाण के हर्षचरित में 'डोर पद पाया है जिसका अर्थ सनात टीकाकार ने 'कटिसूत्र' किया है। ( देखो, ऊपर पृ० २७ ) पेविखसि--(स) प्रेक्षसे, पजाबी में प्रव, ईक्ष अभी देखने के अर्थ मे है, तू घेख, वह वेखदा है । गम्मारिनोवार । पापाटि-छद के लिये 'इ' को दीर्घ पढो । गज्जी ई-म० गर्जति, या-गर्जत्सु, कपर व्याच्या देखो। चिविखलि-कीचडल', फिसलनी, पजावी चिफली संस्कृत पिच्छिल का व्यत्यय) हेम० देशी० ३।११ निवपल्ल । होसे-मिलामो, गुजराती मारवाडी होशे । प्रवारि= राजग्यानी प्रवार (अव)। (४) "तेलिगः देश के राजा संलप (वल्याण के सोल की तैलप इमो) को छेडछाड पर मुज ने उस पर चढ़ाई की। मनी न्द्रादित्य में मज को रंग औरः समझाया कि गोदावरी के उस पार न जाना कितु मुज तनप को पहले छह बार हरा चुका था, इसलिये उनने मन्त्री की सलाह को उपधा की। रद्रादित्य ने राजा का भावी मनिप्ट समन और अपने फो मममय जान चिता मे जलकर प्रारण दे दिए' । गोदावरी के पार मुरमी सेगमा सण 1 . १ देखो पनि का भाग १, पृष्ठ ३२५-३१ ।