पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/३५

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पुरानी हिंदी से काटी गई और तैलपामुज को मूंज की रस्सियो सेबदी करके ले गया। वहाँ उसे लकड़ी के पिजडे मे कैद रखा, तैलप की बहन मृणालवती से मुज का प्रेम हो गया । एक दिन मुज काच, मे - मुंह देख रहा था कि, मृणालवती पीछे से आ खड़ी हुई और मुज के, यौवन और अपनी अधेड उमर, के विचार से उसके चेहरे पर म्लानता मा गई, । यह देख मुज ने यह दोहा कहा- is मुज भगइ मुगालवइ जुन्धरण ,गयु म झूरि । जई सक्कर ।सय खंड थिय. तो इस मोठी चूरि ।। अर्थ--मुज कहता है, है • मृणालवती ! गए हुए यौवन को . (का) सोच मतकर, यदि शक्कर के सौ टुकड़े हो जायें तो वह चूरी ( चूर्ण को हुई ) भी मीठी होती है । भण-भणे, कहै (सं० भणेति ) । मुणालवई-स्वर ऋ कि 'उ' श्रुति देखो । 'जुत्रण-जोबन, यौवन । गयु--गयो ( कर्मकारक ) । झरना- "पछनाना, विलाप करना । जइ (सं० यदि, हि० ) सय-शत । थिय वर्तमान 'था' का स्त्रीलिग, स० स्थित, थी, गुजराती थई । इस—यह । वीकानेर के राजा पृथ्वीराज को रानी चांपादे ने पति को अपने धौलों (श्वेत केशो) पर पछतावा करते देख ऐसे ही दोहे कहे थे-नरा नाहरा डिग- भरा पाका ही रस होय,"नरा तुरंगा वन फला पक्का पक्का साव (महिलामृदुवाणी)। --1 । रुद्रादित्य तो मर गया था । वह उदयन-वत्सराज के मन्त्री योगंधरायण की तरह अपने स्वामी को बचाने के लिये पागल का वेश धर के नहीं पहुंचा किंतु मुज के कुछ सहायक तैलप को राजधानी में पहुंच गए। होने बदीगृह तक सुरग लगा ली । भागते समय मुज ने मृणालवती से कहा कि मेरे साथ चलो और धारा मे रानी बनकर रहो । उसने कहा कि गहनो का उब्वा ले आती हूँ कितु, यह सोचकर कि यह मुझ अधेड को वहाँ जाकर छोड दे तो न घर की रही न घाट की, उसने सब कथा अपने भाई से कह दी । वत्सराज की तरह घोषवती वीणा और वासवदत्ता को लेकर निकल जाना तो दूर रहा, मुज बही निर्दयता से फिर बांधा गया। उससे गली गली भीख मंगाई गई। उसके विलाप की कविता मे कई श्लोको के साथ कुछ पुरानी हिंदी कविता भी