पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/३७

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३२ पुराना रहदा 7. iiri" ir 5 (६) झाली तुट्टी किं न 'मुठ कि न हुयर्ड छारपूर्व । हिंडइ दोरीवधीय: जिम मकडतिम मुज ।। [कुछ बदला हुआ रूप प्राधुनिक हिंदी का सा, जलि टूटि किमि न मुआ, किम न हुयो छरपुज । हिड डोरी बाँधियो जिमि म ड तिमि मुंज 17 पाठातर-झोली तुट्टि वि कि न केउ भुयउँ, छारहपुज, धरि परि तिम्मै नचावइ जिम, तुटवि, झोली त्रुटी, हूयउ । अर्थ- (प्राग में) जलकर याँ (फाँसी की रस्सी)' टूटकर (म) क्यो न मरा? राख का ढेर क्यो न हुमा ? डोरी से बंधा हुा 'जैसे बदर घूमत्ता फिरता है वैसे मुग (फिरता है) । पाठातरों में झोली (फांसी का फदो) टूटकर भी कुछ न किया. .पर पर वैसे नचाया जाता है, जैसे. झाली, जलकर सज्वल, राजस्थान मेरमाग की लपटा (ज्वाला.)-को झाल या कल कहते है । तुट्टी तुटवि-तूट टूटे, सत्रुट) का मुनाउँ- मुत (हुप्रा.) ऐसे ही हुयउन्हुआ-1 कि, क्यो ।कार-माता के लिये घर पढ़ो; छार-और राख दोनो भस्म के अर्थ मे एक हो देशी पद के व्यत्यय है, साक्षार (खारा) से केवल सादृश्य है, राख से सस्कृत रक्षा वाया गया है । हिडन स.. हिडति, घूमता है, पजाबी हडना , भटकनार जसे गलियां दा हडना छाडि देई.कान्हा, हुण होया.त घरवारी (गीत काहतुम गलियो का भटकना छोड़ दो, अब तुम गृहस्थी हो गए हो, हुए =स अधना ) दोरी देखो कपार (३). 1 मकड-स० मर्कट । पुराने लेखक द्वित्व वाला अक्षर व बताने के लिये दुवारा अक्षर (युक्त) लिखने के परिश्रम से बचने के लिये अक्षर पर अनुस्वार के सदृश विदी लगा दिया करते थे, वही कई शब्दो मे लेखकभ्रम से (न' श्रुति हो गई, जसे, समर्कट-प्रा० मक्कड (लिखा गया) मकड़ भ्रम से मङ्कङ, स० खङ्ग-प्रा० खा-खग, हिंदी खड्ग, ऊपर ,(५) मे पतिज्जइ का पतिज्जड, सं०.अत्यद्भुत-प्रा० अच्चम्भुन-अच्चभुअ-हि.अचम्भा, इत्यादि। पूर्वकालिक क्रिया के रूपो पर टिप्पण-संस्कृत वैयाकरणो ने त्वा (गत्वा कृत्वा) को पूर्वकालिक की प्रकृति और योग सत्कृत्या, संगत्य) को धातु के पहले उपसर्ग आने पर विकृति माना है। किंतु पुरानी संस्कृत में यह भेद नहीं हैं।